Posts

Showing posts from December, 2015

फेंक दे ढेला अंतरमन में

अनमने हैं ख्वाब सारे अनमनी हैं सांसें दुनियादारी हाथ लगी है कदमों को है फासें फेंक दे ढेला अंतरमन में अब की शोर मचा दें मध्म मध्म धड़कें कितना ले ऊंची नीची सांसें रात सुबह आलिंगन होगा अब की चल दे भोर देखने बरखा फिर से गीत गा रही चल जंगल में मोर देखने मन जंगल होने दो बनते हो बाग बगीचा क्यों जल कल कल होने दो पोखर में खुद को घींचा क्यों उस ओर तो खतरा है एक अंधकार में जाने का इस ओर दिलासा है जीते जी मर जाने का ‪#‎ Sainiऊवाच‬