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Showing posts from August, 2015

फुल टाइम लेखक की महत्ता

मानव इतिहास में हम दो तरीको से झांक सकते हैं, एक इतिहासकार के जिरए, दूसरा लेखक के माध्यम से. दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, इतिहासकार आपको तथ्य से रूबरू करा सकता है, जैसे कोई शरीर हो कि ये आँख है, ये कान, ये दांत वगैरह वगैरह. दूसरी तरह उस काल का लेखक उस समय के समाज की आत्मा से आपको जोड़ता है और जितना आप समाज को समझेंगे उतना ही उनके इतिहास को समझना आसान होगा. किताबें महज किताबें भर नहीं ये "टाइम मशीन" हैं, जो आपको काल यात्रा कराने में सक्षम है जैसा कि मुझे प्रेमचंद और टैगोर पढ़ कर लगता है, आपको भी लगा होगा शायद. मैं यह दावा नहीं करता कि मैं आपने वाली पीढ़ियों के लिए वर्तमान काल का बिम्ब छोड़े जा रहा हूँ, मगर कोई और तो ये बिम्ब गढ़ ही रहा होगा कविताओं से, नाटकों और कहानियों से, फ़िल्मों से. आज हम पुराने दौर की किताबें पढ़ कर उस दौर को महसूस कर पा रहें हैं, समझ पा रहें है कि समाज का विकास कैसे हुआ और जब हम समाज का विकास समझते है तब हम ये भी समझ रहे होतें हैं, कि मानव विकास कैसे हुआ (मैं यहाँ शारीरिक विकास की बात नहीं कर रहा). जब उस दौर के लेखकों ने अपनी रातें काली की तब जा कर हमे

सन्नाटा अंकुर फूटेगा

रैन जगू मैं, दिन सो जाऊं  इक सन्नाटे की बात बताऊँ  सन्नाटे में इक बीज पड़ा है  भाग भाग के खीज पड़ा है  दफ्तर दफ्तर माटी डाले  कटपुतली बन बात दबा दें  सन्नाटे से दूर रखा है  हमको चकनाचूर रखा है  नैन रैन हो आए जब  बूंद बूंद बरसाए जब  गम का दरिया छुटेगा  सन्नाटा अंकुर फूटेगा     जब रैन दिवानी आएगी  ख्वाब फसल लहराएगी  अक्षर  शब्द  लुटाएगी गीत  कहानी  गाएगी  ‪#‎Sainiऊवाच‬

स्याही की जादूगरी

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कभी आंसू कभी मुस्कान कभी मन की उधेड़बुन कोरे कागज़ों का सन्नाटा  जिसे अकसर नहीं भाया कभी रंग लिखती है कभी खुश्बू लिख डाले कभी चहकन सुनाती है  कभी थिरकन पिरोती है  स्याही की जादूगरी को  दुनिया गुलज़ार कहती है जन्मदिन पर सत-सत नमन करूँ मैं कलम छोटा सी ‪#‎Sainiऊवाच‬

मेरी किस्मत में पत्थर था

कभी रोना नहीं आया  कभी हंसना नहीं आया  मेरी किस्मत में पत्थर था जिसे धड़कना नहीं आया ------------------------------------------------- हाँ! मैं भी बिकाऊ था  मुझे बिकने की चाहत थी  एक मुस्कान के बदले  हम दिल हार बैठे थे  बाजारों में कटी उम्र  मगर बिकना नहीं आया ----------------------------------------------------------- न जख्म ठहरेंगे, न दर्द ठहरेगा  तेरा साथ देने को कोई नहीं होगा तन्हाई वफा देगी या बेवफा होगी  हमेशा साथ चलने को कोई नहीं होगा -------------------------------------------------- हसरतों के बोझ ने सर को झुकाया है  जब अदना सा खादिम भी आंखें दिखाता हो समझो हसरतों की गठरी कहीं पे छोड़ आया है ----------------------------------------------------- कभी है बर्फ सी गर्मी  कभी है आग की ठंडक शब्दों से गलत खेला हम रातें बहोत जागे ------------------------------------------------------- कभी किरदार जीता है  कभी किरदार मरता है  कलम की ये भी है खूबी कि स्याही लाल लिखती है --------------------------------------------------------