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Showing posts from August, 2014

भितरी क हई, भितराय देब

भितरी क हई, भितराय देब कनवा के पकौड़े, हीरा की चाय, मुस की इस्त्री, ये तीनो मेरे गाँव की खासियत हुआ करती थी, गाँव भितरी (सैदपुर) जिला: गाजीपुर, उ.प्र . कनवा के पकौड़े तो हम कभी चख नहीं पाए हाँ उसका बेटा भी कोई कम अच्छे पकौड़े नहीं बनाता था, जिसका लुत्फ़ हमने बहुत उठाया पर पापा कहते हैं कनवा के पकौडों के सामने ये कही नहीं ठहरते हमारे नसीब में तो ये भी था, अगर कभी हमने शादी की तो हमारे बच्चों के नसीब में ये भी नहीं होगा, कनवा का बेटा पईसा कमाने बम्बई चला गया करीब चार साल पहले, अब वहां साइकिल रिपेयर की दुकान है. हीरा की चाय! जरुर पी पर बस एक बार यही कोई डेढ़ साल पहले BHU में MBA के दौरान, अगले सप्ताहांत में जब फिर गाँव गए तो पाता चला हीरा ने आत्महत्या कर ली, अब हमारे गाँव की एक और खासियत चली गई. अब जो बचा है, वो है मुस की इस्त्री, मुस कि इस्त्री किए हुए कपड़े एक धुलाई बाद भी बिलकुल इस्त्री किए हुए लगते है, बुढा तो मुस भी हो गया है न जाने कब चला जाए कह नहीं सकते, जैसे मुन्ने भाई चले गए उन्ही के स्कूल में हम गधइया गोल टक पढ़े थे, मुन्ने भाई का आम का बगीचा हुआ करता था, दसहरी आम के उस बगीचे के तो क

ये कवि बड़ा बेबस है

गर्मी है घमौरियाँ हैं उमस है ये कवि बड़ा बेबस है घर जा नहीं सकता वहाँ की बरसात यहाँ ला नहीं सकता कई रातें चना ही बना है भयंकर भूख का जवाब माँ के हाथ का खाना एक सुहाना ख्वाब हौसला आसमां कभी कभी जमीं पर हो जाता है मौका हो या रिश्ता मेरे छूने से पत्थर हो जाता है कुछ नहीं पत्थर होता तो यह दिल यह आंखें आंखों में ख्वाब भरे दिल धड़कता ही रहता है : शशिप्रकाश सैनी