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Showing posts from March, 2014

The होली Day २ (The Tiger Series, Episode 3 )

आज होली है, शकरपूर के मानचित्र पर रंग धीरे धीरे उभरने लगे है । हमारी कहानी के मुख्य किरदार अभी सो रहे है क्योंकि उन्होंने ने रात को शक्ति वर्धक पदार्थ का सेवन किया था, कल रात चीता पिचकारी और गुब्बारों के साथ साथ शक्ति वर्धक पदार्थ भी ले आया था और दिन रंगीन करने से पहले भालू, बूढ़ा बाघ और चीता ने रात रंगीन कर ली । हमारे टाइगर पहले से शक्तिशाली है इसलिए वो शक्ति वर्धक पदार्थ का सेवन नहीं करता, हाँ कभी कभार मुह से धुआँ निकालने का करतब जरूर दिखा देता है । सबसे पहले चीता उठता है और कल लाई गई थंडई को सादी से रंगीन बनाने में जुट जाता है, मैं दर्शकों को बताना चाहूँगा जब थंडई में भांग मिलाई जाए तो थंडई सादी से रंगीन हो जाती है , अब धीरे धीरे सारे जानवर उठते है । ( मैं बताना चाहूँगा ये वर्णन आँखों देखा नहीं कानों सुना है क्योंकि मैं उल्लू, अपने मित्र बाज के घोसले में होली मनाने गया हुआ हूँ) चीता : हैप्पी होली भाई लोग सब एक स्वर में : हैप्पी होली चीता : आओ भाई लोग थंडई का आचमन कर के हम होली की शुरुआत करते है टाइगर : सुबह सुबह थंडई पीने की बात कर रहा है, दिमाग टिकाने है या नहीं भ

Guest Student

महात्मा गाँधी मिशन में लिया था हमने एडमिशन ब्रांच थी हमारी इलेक्ट्रॉनिक टेली कम्युनिकेशन कोर्स को थोड़ा Seriously लिया दूरभाष का कोर्स दूर से ही किया Attendance तीस Percent थी जिसमें पच्चीस मित्रों की मित्रता रूपी Proxy हम गणित लेक्चरार की आंखों में धस गए उसको गुस्सा ये हम ब्लैक लिस्ट से कैसे बच गए उसने धमकी भरा बुलाव भेजा मन में उमड़े खयाल अब तो तुम फस गए बेटा डरे सहमे हम क्लास के दर्शन को आए बुद्धि लगी थी सोचने बहाना नया कौन सा लाए क्या मरे हुए दादा को फिर से मरवाए हमारे घुसते ही मैडम खड़ी हो गई और दहाड़ी Please welcome our guest student Even you can call him Mr India बिना एक क्लास किए सेमीस्टर पूरा किया फिर भी ये ब्लैक लिस्ट में नहीं है क्या खूब जिंदगी है वो फिर दहाड़ी I Hope तुम्हें Attendance के साथ साथ नंबरों से भी खेलना आता है जमुरे आज हमें भी देखना तू खेल क्या दिखलाता है मैं ही तेरी खेवैया, मैं ही तेरी मजधार सफल हुए तो उस पार नहीं तो अगला सेमिस्टर हमारे साथ बिताए सरकार इतना

The होली Day-१ ( The Tiger Series Episode-2)

हमारा टाइगर कमरे में नहीं सोता, जब उसे पहली बार अजगर मकान दिखाने लाया था तभी टाइगर ने कह दिया “मैं कमरों में नहीं सोता मुझे खुली जगह पसंद है, मेरे लिए हौल में बेड डाली जाए मैं हौल में रहूँगा, हाँ चाहो तो मेरा बेड पर्दों से घेर सकते हो, ताकि आते जाते लोग मुझे देख डर न जाए” | हमारे हौल में कोई पंखा न था, पर टाइगर का जलवा यहाँ भी चल गया, टाइगर ने अजगर की दुम पे पैर रख आज पंखा भी लगवा दिया, बड़े अचरज की बात है अजगर टाइगर की हर बात मानता है, कही टाइगर अकेले में अजगर को धमकाता तो नहीं “सामान दो नहीं तो सम्मान ले लूँगा”, खैर ये तो रहस्य है | बात आज की करते है, आज का दिन बड़ा अजीब जा रहा था, अभी सुबह को ही लीजिए हम सब सो रहें थे, टाइगर भी सो रहा था, टाइगर का अलग से जिक्र करना पड़ता है क्युकी वो टाइगर है वो हम में नहीं आता, टाइगर के सामने हम शब्द बड़ा छोटा मालूम देता है | खैर मुद्दे पे आते है हमारी आँख सबसे पहले खुली सब गहरी नींद में थे, हम सोचने के लिए सोचालय की तरफ बड़े ही थे कि हमें कुछ सुनाई दिया “खड़ी बा सोमो हमार गोरिया आके बईठ जा” उस तरफ नजर फेरी तो देखा पर्दों के बीच में लकडबघ्घा बैठा हुआ था

एक था टाइगर (The Tiger Series, Episode-1)

आज हम टाइगर की बात करेंगे, ये कोई जंगली नंग धडंग घूमने वाला जानवर नहीं बाकायदा कपड़े पहनता है, इस्मार्ट फोन भी इस्तेमाल करता है और सुना है C.A बनने दिल्ली आया हुआ है | टाइगर यूँ ही नहीं कहते इसे, उम्र महज १८ साल पर है ये टाइगर बड़ा खूंखार, कोई मौका कोई शिकार नहीं छोड़ता और दहाड़ ऐसी कि उड़ीसा तक काँप उठता है इसके खौफ से | ऐसे टाइगर को एक पोस्ट में निपटानें की गुस्ताखी हम नहीं कर सकते, इसलिए अब हम "The Tiger Series" नाम से पूरा सीरियल लिखेंगे | आज के एपिसोड की तरफ बढ़े इससे पहले थोड़ी भूमिका हो जाए, दिल्ली के शकरपुर में गौरी शंकर निवास के बी-१० में रहने आया है टाइगर, इस कहानी में और भी किरदार है जैसे जैसे कहानी बढती जाएगी किरदार जुडते जायेंगे | पहला किरदार तो खुद टाइगर है, दूसरा मैं उल्लू जो रात भर जगता है और कुछ बनने मुंबई से दिल्ली आया हुआ है आप समझ ही गए होंगे उल्लू किस लिए अक्सर लोग मुंबई जाते है और मैं मुंबई छोड़ आया हूँ | तीसरा है चीता, चीता इसलिए की चीता ही पीता है और जिस रफ़्तार से ये सुट्टा पीता है कोई और चीता क्या पीता होगा, चौथे है भालू, ये शरीर से भालू नहीं है हरक

बिना बांह का स्वेटर

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हर गाँठ में कुछ बाँध रही थी  कही प्यार,  कही दुलार, कही आशीर्वाद पूरा होते होते वो स्वेटर सा दिखने लगा था, गुलाबी रंग का माँ ने मेरी चंचलता भी उकेर दी थी तितली के आकार में, नीले रंग की तब बिना बांह का स्वेटर भी ठंड रोक लेता था आज पुरे जैकेट में भी कपकपाते रहते है क्यों  क्योकि स्वेटर में माँ की ममता थी जैकेट में तो बस मुनाफा छुपा है : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

गर्व करूँ औरत होने में

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जीवन जग का चक्र विशाल सड़क भी हूँ, पहिया भी हवा भी हूँ, पानी भी पुर्जा पुर्जा लगी हुई हूँ मैं ही जग की तारनहार गर्व करूँ औरत होने में किलकारी से शुरू हुई जब माँ खुश थी, बापू था चिंतित चिंता का घट छलके इतना क्या पाप हुआ है लड़की होना मुर्ख समझते बात जरा ना मेरे बीन चले कौन घराना माँ ने गुंथी थी दो चोटी एक चोटी में दृढ निश्चय था दूजी में था प्यार अपार बुद्धि बल की बात बतानी बींच में थी एक मांग सुहानी गर्व करूँ औरत होने में बस्ता भारी रिश्ता भारी मुझ पर सारा बोझ पड़ा भाई खेला था मैदानों मुझकों घर था खोज पड़ा डंडे से खेलूं मैं भी हॉकी कपड़ें मेरे भी गंदे हो मैं भी दौडूंगी मैदानों मुझकों तुम कमजोर न जानो दो मुझे बल्ला, दो फुटबॉल पदक मैं देश की खातिर लाऊं मैं भी दौडूँ लंबी चाल गर्व करू औरत होने में फ़ौज में लड़ती, बस कंडक्टर पाइलट बन के उड़ती फड़फड़ कला मुझी में, संगीत मुझी में गृहणी घर में, बॉस हूँ दफ्तर मुझकों क्या? तुम समझे कमतर गर्व करू औरत होने में मेरे बीन संसार न चलता मेरे बीन घरबार न चलत