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Showing posts from November, 2013

अँधेरा बंधन हैं

अँधेरा बंधन हैं, बेडियां हैं आदत पड़ गई जिन्हें अंधेरो की  वो अब भी हैं समझते  अँधेरा क्या हैं, बस एक ख़याल हैं  इस पल से उस पल में कितना अंतराल हैं  अँधेरा क्या हैं, एक सवाल हैं  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अरे भोली जनता

जिनसे डर था, जो कुर्सी खिचता लगा  सत्ता हाथो से जाती दिखी शक्ल जिनकी डराती दिखी बाबा, मोदी सपनो में आएं नींदे उडाएं स्वामी जब बोले बस टेटुआ दबाएँ घिघी इनकी बंध गई  आंखे लाल साँसे चढ़ गई वोटर जब रूठता दिखा पापो का घड़ा फूटता दिखा सत्ता हाथो से फिसलने लगी आग ऐसी लगी जान जलने लगी हाथ के हथियार रामलीला में देर रात चले डंडे आजमाएं सारे हथकंडे एक दिन में 81 केस  बाबा ने किये फेस मोदी पे आरोप कई  मीडिया सब छोड़ दी मीडिया, सीबीआई सबने किया मुजरा  जब भी दिल्ली ने कहा जो कहते हैं आम हूँ मैं बिगडती व्यवस्था का समाधान हूँ मैं जब मेरी झाड़ू चलेगी गंदगी सारी मिटेगी  दिल्ली इस बयान पे न दहली बल्कि तारीफ़ की ईमानदारी इनके के खून में समाई ये आम अच्छा आदमी हैं भाई न आरोप न केस न सीबीआई अरे भोली जनता दिखा थोड़ी सी तो चतुराई ये वोट काटने की अंगड़ाई समझ, जितना झाड़ू चले उतनी हथेली मुस्काई झाड़ू से हाथ डरता  तो उसपे भी होती सीबीआई चाल तो देखो समझो जरा  झाड़ू ने रंगत हथेली से पाई अरे भोली जनता दिखा थोड़ी सी तो चतुराई

द्वन्द हैं लम्बी कहानी

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जाने कब से लड़ रही हैं भाग्य और मेहनत हमारी स्वप्न सच करने की बारी द्वन्द जाने कब से जारी जीत भ्रम है ये न पालो हर पल सय मात खेले  पग पग पे बाजी लड़ानी द्वन्द हैं लम्बी कहानी आज तुम छाती फुलाए आज तुम हुंकार पे हो कल को मैं भी सर उठाऊँ द्वन्द में अंतिम नहीं कुछ : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अच्छा चाय वाला लाना हैं

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दिल्ली की भट्टी सूनी टूट रही फूट रही धूल से जूझ रही नौ साल में मकड़ियों ने जाला कर दिया स्वर्णिम भारत का स्वप्न काला कर दिया कभी दूध में मिलावट कभी चीनी में गबन ग्राहकों से अनबन अच्छी भली दुकान पे ताला कर दिया स्वर्णिम भारत का स्वप्न काला कर दिया मालिक जनता ने नौकर गलत रखा स्वाद बेईमानी का चखा दिमक ऐसा लगा दिवाला कर दिया स्वर्णिम भारत का स्वप्न काला कर दिया अब की सही चाय वाला लाए जो दिमक न लगाए जिसे मालूम हो टूटी दुकान फिर से कैसे चलानी हैं एक अच्छी चाय में कितना लगता दूध, कितना लगता पानी है भट्टी को कितनी आंच पे लाना है पत्ती को कितना खौलाना है जिसे मतलब न हो ग्राहक पंडित है  या मौलाना है मकसद बस अच्छी चाय पिलाना है उसकी चाय से हौसला आए थकान जाए ऐसा चाय वाला लाना है जब भी चाय पीए ये याद रखे अब की कहा   बटन दबाना है हमें एक सच्चा अच्छा चाय वाला लाना है

शुक्रिया सचिन

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हमारे वक़्त में उगा था सूरज कभी,  उसकी चकाचौंध हमने आँखों से देखी.  देखा है उसे मैंदान में गरजते,  बल्ले से उसके चौके-छक्के बरसते, रनों के पहाड़ पे चढ़ते.  शतको का अम्बार लगा,  करोड़ों दिलो में कर जगह  क्रिकेट का खुदा हुआ.  लिटिल मास्टर,  मास्टर ब्लास्टर,  उस्तादों के उस्ताद,  इस वक़्त में जन्म ले, जो आपने हम पे अहसान किया  तहे दिल से करते हैं हम शुक्रिया.  ‘सचिन’, इस नाम को  सुनते ही आता हैं ख्याल  सचिन यानी कड़ी मेहनत,  सचिन भरोसे की छत,  सचिन शिखर,  सचिन सज्जन.  नम आँखों से करते हैं नमन.  डूबता सूरज कोई तुम्हे कह नहीं सकता,  उजाला ये आँखों से कभी ढह नहीं सकता.  मैदान भले छोड़ो, हम दिल छोड़ने न देंगे,  दूसरा अब इस दिल में कोई रह नहीं सकता. : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

सामर्थ्य(my book) Reviewed by Leo

आज मेरी आंख छलक गई, क्यों क्योंकी अब तक तारीफ़ इन कानो को कम ही मिली हैं | और आंख क्यों न छलके, जब तारीफ़ भी इतने बड़ें ब्लॉगर से मिली हो Vinay (Leo) जी से, ब्लॉग जगत में जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं | आज Leo भाई ने मेरी किताब का Review लिखा हैं, आप भी पढ़े| There’s a poem titled “What is Life?” that really reminds me of WH Davies’ poem “Leisure” which is my favorite poem. He questions what is life where we are only behind goals and money, that we forget the journey itself is a brilliant experience and there are wonderful things already around us. I also liked the title poem, which talks about Power (or Capability, or the two interchangeably). If you have capability, then you can ask questions, do anything, even become human. This poem was a little deep for me, not sure if I’ve understood it correctly. Another poem I loved was the one where night questions the day. It felt very serene. Read the full review here  सुबह मशीन बन पेट की खातिर ईंधन जुटाता हूँ रात कविता करत

कुछ नया होगा तो जीत होगी

अँधेरा हैं?  उजाला हैं?  दामन में मेरे क्या हैं? मैं कोई दावा नहीं करता ! जलना गर नसीब मेरा, तो जलना पड़ेगा | अपनी बूंदों से न बुझाओ मुझे जलने से मेरे होता उजाला, तो उजाले होने दो | इस किनारे से डर लगने लगा हमको  रोको ना मुझे, लहरों के हवाले होने दो | कुछ नया होगा तो जीत होगी  हार से तो अपना रिश्ता पुराना हैं | : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

थोडा मैं पागल हूँ

हमेशा समझदारी का ढोंग हमसे नहीं होता  थोडा मैं पागल हूँ, ज्यादा गम नहीं ढोता वो समझदारी ही क्या  जो घर बाँट दे  दर बाँट दे  जमीं, पर्वत, लहू बाँट दे  बाँटते बाँटते, हम हो गए इतने छोटे  गाडियों की टक्कर पे तमंचे निकले  समझदारी बाँटते बाँटते, पूरा शहर बाँट दे  कुछ हरकते बचकानी भी कर ले  बेवजह हंस ले, बेवजह रो ले  कभी पागलपंती में शामिल हो के देखा जाये  पागल होना इतना बुरा नहीं होता  मेरी हरकतों पे हंसती हैं दुनिया  तेरी तरह आंसुओ का सिलसिला नहीं होता  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

इस दीपावली, एक दिया और

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This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 43 ; the forty-third edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "LIGHT" घर अपने किस कोने में अँधेरा है करे थोड़ा गौर इस दीपावली एक दिया और एक दिया रोटी का जहाँ अँधेरा भूख है व्यवस्था अब तक मूक है पकवानों से अपने, बढ़ाए एक कौर इस दीपावली एक दिया और एक दिया लाठी का जब तक ये पेड़ थे घने, पाला उन्हें आज ठुठ हुए, इन्हें ही काट दिया बूढ़े माँ बाप का, नहीं कोई ठौर इस दीपावली एक दिया और एक दिया दुलार का कोख में न मारे उसके भी सपने, उसके भी हक़ उसकी भी जिंदगी सवाँरे बेटा, बेटी का भेद, न पाला करे हर बच्चा दिया है पूरा मौका दे, दिया ऐसा जले दुनिया में उजाला करे बुराइयाँ पुरानीं हैं लगाएं पूरा जोर इस दीपावली एक दिया और एक दिया किताबो का अँधेरा चाय की दुकान पे मिठाई और पकवान पे आपके पसंदीदा रेस्टुरेंट पे अँधेरा जूठे बर्तनों पे अँधेरा सड़क किनारें