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Showing posts from July, 2013

जन्मदिन पे अपने हम कविता गाएंगे

जब भी घडी की सुइयां  रात बारह पे आई किसी मित्र ने केक कटा  मोमबत्तियां बुझाई अपने अंदाज़ में हमने दी बधाई हैप्पी बर्थ डे टू यू तो सभी गाते हमने कविता गाई जो खासो ख़ास के लिए लिखी  आज आप से साँझा कर रहे मेरे शब्द मेरे भाव मेरी बधाइयाँ और किसी के काम आ जाए तो क्या बुराइयाँ आज जैसे ही सुई बारह बजाएगी जुलाई छब्बीस ले आएगी  गम भूल जाएंगे बत्तीसी दिखाएंगे जन्मदिन पे थोडा मुस्कुराएंगे 2015 का अंदाज : आंखों में सजे ख्वाब नए यूँ ही मुस्कुराहट बनी रहे तकदीर आपकी आसमानी रहे इस जन्मदिन नए अध्याय जुड़े घर का आशीष बना रहे हम दोस्तों की दुआएँ चलती चले जश्न की वजह बनो खुश होने के नए मौके मिलें 2014 का अंदाज : होठों पे हँसी रहे, आँखों में चमक चाल थिरकती रहे, आवाज में खनक खुशियां इतनी बरसे, झोली छोटी पड़ जाए केक की भुझा लिजिये मोमबत्तियाँ भले चाँद आए सूरज आए, आपकी रौशनी बढ़ाए अगले जन्मदिन पे यूहीं मुस्कुराते आइएगा जी हमारा हिस्सा केक का एक्स्ट्रा खाइएगा जी    2013 का अंदाज : बारिश लाए खुशियों की  बरसात हो जाए

साक्षात्कार शशि और उसकी कविताओं का

मित्र और  Desire v/s Destiny    के   ब्लॉगर राहुल मिगलानी द्वारा किया गया मेरा साक्षात्कार  साक्षात्कार के कुछ अंश,  पूरा पढने के लिए इस लिंक पे जाए Interview with shashi - hindi poetry उत्तरप्रदेश के जौनपुर में जन्मा हूँ, महाराष्ट्र के पनवेल में पला हूँ डिग्रियों की मानू तो इंजीनियर और एम् बी ए हूँ हरकतो से मै कवी हूँ, कभी कैमरा कभी कलम  माध्यम अलग अलग हैं , पर दोनों से मै करता कविता ही हूँ शौक बोलू या जिंदगी यही हैं कलम और कैमरा पिछले दो साल से BHU में MBA कर रहा था वहां से भी एक शौक ले आये हैं घाट चाट गलियां बहुत घूमी, अब घुमक्कड़ हो चले हैं दो ब्लॉग है मेरे शशि की कविताये और नव भाचित्रक जैसा मै हूँ वैसे मेरे ब्लॉग हैं 'मन की मर्जी पे मै थिरकने वाला दूजे इशारो मै नाचता नहीं जब भी धडकनों ने कही कलम चल दी ' //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

घर चिडीयाघर हो गया

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घर चिडीयाघर हो गया अतिथि आने का ये असर हो गया कोई बन्दर हुआ कोई मगर हो गया दर्द पे मेरे क्यों इतना बेखबर हो गया मुझे मलहम की आश तू जहर हो गया गेस्ट रूम बन मेरा कमरा गया घर में ही अपने मै बेघर हो गया पकवान पे पकवान हमे तो न खिलाया कभी ऐसा सामान जहाँ दाल रोटी नदारद थे वहा पुलाव हैं सिक्का अपना ज़माने के लिए बटुआ मेरा झकझोरा गया आँखों में आंसु नहीं दिल रोता रहा मै तरबतर हो गया सांप नेवले गिरगिट हैं  बच्चे इनके पुरे घर का कबाड़ किया क्या नहीं जिसे दो फाड़ किया ये भी सह लेते हम जुल्मों सितम टूर गाइड समझा हमे कार से सैर सपाटा गरीबी में गिला हुआ आटा अब आप ही बताएं इस महंगाई में कोई आप का पेट्रोल जला दे इससे तो अच्छा जहन्नुम ही न दिखा दे घर चिडीयाघर हो गया दर्द इतना बढ़ा की हमसफ़र हो गया  घर चिडीयाघर से जंगल हो न जाए मेहमान खब्बू पहालवान महंगाई दे चोट ये दे पटखनी जीवन में कही दंगल हो न जाए हे भगवान मेहमान से बचा मेरी जान मंहगाई में जीना नहीं आसान कोई दे बूटी दे कोई समाधान

मुझे पहचानेगा कौन

मैं मैं ही रहूँ वही अच्छा कोई और हो जाऊं मुझे पहचानेगा कौन भीड़ न भाए न भाए आपाधापी धडकनों की सुनने के लिए  अच्छा है रहना मौन  दिलचस्पी पैसो में, इंसानों में नहीं  ऐसा न हो साथ मेरे  भावनाएं कही रह जाए न गौण  आदर्श हो रहे गौण  चित्त अब भी है मौन  मशीनों में मशीन हो जाऊं  मुझे पहचानेगा कौन : शशिप्रकाश सैनी

दुःख के साथी हम

बेमौसम बरसात भिगाए  दुःख के साथी हम छाता अपना खोल न पाए  दुःख के साथी हम कमरा बीस घर था अपना  रोजी का सब टुटा सपना  दुःख के साथी हम पीड़ा सर से पार हुई  तब सुख की बौछार हुई  आँखों के आंसू है गायब  होठो पे मुस्कान भरी  सुन कर तेरी जीत कहानी  ख़ुशी बहोत इस बार हुई  तुम सुख में कदम बढाओ  मै भी वादा करता हूँ  थे दुःख के साथी हम  सुख में भी साथ निभाऊंगा  रोजी मै भी ढूढ़ रहा हूँ  नील गगन पे छाऊंगा  खुशखबरी मै भी ले के आऊंगा  दुःख के साथी हम  सुख में गाथा नयी रचेंगे मिल कर जश्न मनाएँगे जब भी काशी जाएंगे  : शशिप्रकाश सैनी

किस्मत चाहूँ थोड़ी सी

ऐ हवा जरा तू साथ निभा  फिर तेजी मेरी देखती जा आज जमी कल नभ छुलू कभी यहां कभी वहां उडू आज कदम दो कदम बढ़ाऊ कल रफ्तार पूरी हो जाऊँ नामुमकिन कोई शब्द नहीं  बस मुश्किल थोड़ी ज्यादा हैं  किस्मत चाहूँ थोड़ी सी  मेरा मेहनत का इरादा हैं  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

झमाझम बरसात हमारी

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घर से लगती प्यारी  झमाझम बरसात हमारी  खेल खिलौने  बूदें हो  होठो पे मुस्कान चढ़े  अखियाँ मूंदे मूंदे हो  छप से मारू छप्कारी मुझको लगती प्यारी  आँगन में बरसात हमारी  अब जो जाना दफ्तर हो  कुछ पल तुम आराम  करो  दिन को न तुम शाम करो  न बात जरा ये  माने  गरज गरज के बरसी  है  बिगड़ बिगड़ के बरसी है  बस  का रास्ता जाम हुआ  ट्रैक भरा है पानी  लोकल जरा न हिलती  जब बरसात करे मनमानी  दफ्तर को होती है देरी  थोड़ा रुक जा, मान मेरी  मुश्किल कर आसान मेरी  घर में प्यार मुनासिब था  हर पड़े पोखर वाकिफ था  दफ्तर में रोजी रोटी है इच्छाएँ छोटी छोटी है  मेहनत से साकार करे  पंख उड़ाएं हवा भरे  इतनी कड़कोगी  बरसात करोगी तुम  तो उड़ना कैसे होगा  थाम रे बिजली  गरज नहीं  बूदें हलके हलके ही लाना  मुसलाधार न हो जाना  ऐसा तो मैं कहता ना कि तेरे बिन जीती दुनिया  न इतना ज्यादा बाढ़ बनो  न इनता कम सुखा हो लो  बरस मगर तू हौले हौले बरस  : शशिप्रकाश सैनी 

Salary Monthly हैं

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EMI से दबी हैं Petrol से जली हैं Inflation हैं डेली  Salary Monthly हैं  घुट घुट के मै Suffer करू  और कितना मै जी सबर करू  खाना दाना सभी सब कुछ  लगे हीरे मोती नगीने से  Salary मेरी  लड़ न पाती महीने से हफ्ते पहले गुजर गई  तिनका तिनका बिखर गई चाहतो की चिता जली  जिंदगी धुए से भर गई  हर महीने वही है आंसू वही Tragedy हैं  Salary Monthly हैं  Salary  मेरी  लड़ न पाती महीने से खून नस में जो बहता  कहता बहते पसीने से  क्यों नहीं तू लड़ता  लड़ता पुरे महीने से  लड़ लड़ के जब मै पार हुआ  कुछ रुपया जब तैयार हुआ  बारह(12) बजते दाम बढे  हम लुट गए घर पे पड़े पड़े  Salary ने भी दम तोड़ा Savings हुई कुर्बान  अब तो लगता Inflation ले कर रहेगा जान  : शशिप्रकाश सैनी 

बिकाऊ है सभी

बिकने को तैयार है  यहाँ हर आदमी  कीमत सही लगाइए  मै बिक जाऊंगा अभी  सब के दाम की तख्तियाँ बाजार में लगी  खाकी खादी बिकाऊ है सभी  आदर्शो पे धुल  जाने कब से चढ़ी हुई  मुफ्त भी मिले  तो कोई पूछता नहीं  कोई बिक नहीं पाया  तो बस आम आदमी  महंगाई डायन उसे जीने नहीं देती  और बिकने चला तो कोई खरीदता नहीं  : शशिप्रकाश सैनी