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Showing posts from September, 2012

कुहुक बोले ना

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मै कुहू बोलू तो भी कुकू बोले ना दिल उसका कभी कुहुक बोले ना दर पे रहे जिसके इंतज़ार में बरसों किवाड़ खोले ना कुहुक बोले ना मुझे पड़ाव की जिंदगी नहीं मंजिल की आश थी वो पड़ावो की रानी थी उसे बस रात बितानी थी हां पे हां ना हो सकी ना पे ये इतराए रिश्ता पैसो तोलती पैसा बरसेगा जहा लार वही टपकाए कुहू कुहू करते रहे काक को कोयल समझ बैठे जिसकी बोली काव थी वो कुहुक बोले भी कैसे : शशिप्रकाश सैनी

मुझे मेरा गावँ रहने दो

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वो भी क्या दिन थे मुर्गे की बांग पे नीद टूटती थी दादी उठाती थी लल्ला जागो अँधियारा छटा है  सूरज रौशनी लिए आया है  सवेरा हो चला है  मुह धोओ  करो स्नान जाके  अम्मा रोटी बनाती है  जाना है तुम्हे स्कूल  निवाले खाके  तब धन की अधिकता न थी इसलिए दूध दही न मिली  पापा  परदेश में कमाने लगे तो जाके कुछ पैसे घर आने लगे  पापा अबकी घर आए थे कपडे खिलोने  टोबो साइकिल लाए थे जितनी रोटी हिस्से में जरुरी थी उतनी न मिली थी  अमीरी न थी  फिर भी जिंदगी से खुश था आम की डाल पे चढ़ा था  बेर अमरूद सह्तुत  करुन्दा तरह तरह के पेडों से मेरा घर पिछवाडा दुवार   भरा था अब तो गैया भी आगे थी मिलने लगी दूध दही थी  अचानक लोगो को ख्याल आया  इसे पढाया जाए  बड़ा आदमी बनाया जाए ले जाओ इसे महानगर पढाओ अंग्रेजी स्कूल में क्या रखा है गाव  और गाव की धूल में  पापा अम्मा और मुझे  बम्बई ले आए  बड़े  स्कूलों  युनिफर्मो में  मेरा गाव धुंधला हो गया मेरा गाव पीछे रह गया  क्यों आज भी  हम ज्ञान तरक्की के लिए इस शहर के मोहताज है

कुछ टुकड़े है दिल के

कुछ टुकड़े है दिल के उन्ही में धडकता हू एक पल बिखरता हू एक पल संभालता हू  वो तोड़ गई दिल याद में उसकी फिर भी बहलता हू  कुछ टुकड़े है दिल के उन्ही में धडकता हू : शशिप्रकाश सैनी

अपनी डोर संभालिए

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नीली पीली और हरी पेडों पे हैं, खेतो  में  नज़र जहाँ जहाँ  चली पतंगों से दुनिया भरी नीली पीली और हरी जंग छिडेगी, छत छत पे  वो पतंग उडाए डट के ये नज़र लड़ाए हट के ध्यान न तेरा भटके  कही गिर न जाए कट के न गगन मिला  न खेत  मुझको पूरा खेद  राह से थोड़ा भटके  अब पेड़ो पे हैं अटके  जो ध्यान जरा  ये पाए कोई पेंच  सही लगाए वक्त वक्त पे ढील ढील  है हवा चली उड़ने दे ठीक से पकडो मांझा डोर नहीं उलझेगी गर गलती की न माना तो लग जाए जुर्माना  धागे पे रखा ध्यान नहीं अब उलझन का समाधान नहीं  ये टूटेगी बिखरेंगी गांठें सब उभरेंगी नभ हो जिसका सपना  गिर जाए तो लूट मचे  हाथों इतनी लग जाए फिर ये ना उड़ पाए अपनी डोर संभालिए  गर छूना हो आकाश  ध्यान हटेगा कट जाएगी हाथों हाथों फट जाएगी  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

है बेसब्र जिंदगी

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रुकती नहीं कही ये कभी टिक टिक टिक घड़ी हुई धडकन की ना सुने ना है सब्र जिंदगी है बेसब्र जिंदगी तिनका तिनका जोड़ रहा मेरा भी कोना होगा ये सपने शहर दीखता है सच मेरा भी होना होगा जिस के लिए जी घर था दिल मेरा दर था उसको चाहे राजमहल चुटकी में जी ताजमहल पैसे से इतना प्यार करे पैसे के पीछे हो ली ना है सब्र जिंदगी है बेसब्र जिंदगी उसके बढ़ने पे जलते अपनी पे ना सब्र करे मेहनत उसकी दिखती ना बरसों तप ये पेड़ हुआ हम बैठे नज़र लगाने को हक मेरा था कुछ भी ना इच्छा सब कुछ पाने को उसकी तू माटी कर बस मेरी तू सोना कर दे आँख गडाए गिद्ध हुए बेसब्र हुए कैसे ना है सब्र जिंदगी है बेसब्र जिंदगी भाग बटोरा साँस नहीं है जीने का अहसास नहीं मै गाड़ी मोटर कार हुआ जब नदी पड़ी मुश्किल वाली मै पुल बन कर तैयार हुआ क्या था मै कुछ याद नहीं दिल धड़का पर जज्बात नहीं इतने बदले रंग रूप मै रोज नया किरदार हुआ सब्र रहे इंसा रहता बेसब्र हुआ बेसब्र रहा ना है सब्र जिंदगी है बेसब्र जिंदगी : शशिप्रकाश सैनी

चले वहां, जहाँ मोहब्बत की हवा लगे

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चले वहां, जहाँ मोहब्बत की हवा लगे इन गलियों में, घुटन होने लगे डालियों पे घोंसले नहीं है गिद्ध बैठे नोचने को काटने को कब गिरो धरा पर गिद्ध बैठे बराबर बाटने को पौधा पेड़ होगा नही ये बैठे नोच खाने को चले वहां, जहाँ मोहब्बत की हवा लगे धूप दे, बरसात दे कहानी प्रेम की, तभी पनपे जब जिंदगी हालात दे चले वहां, जहाँ मोहब्बत की हवा लगे खुशी मेरी, उनके तन पे साँप ना हो जाए जलना अपने आप ना हो जाए अपनी कहानी में अपने किरदार जिओ दूसरी में क्यों गुसो नायक रहो कहानी में अपनी मेरी में खलनायक न बनो चले वहां, जहाँ मोहब्बत की हवा लगे धागे प्रेम के, हो मजबूत इतने न सिकुड़े न टूटे जिंदगी तू, जख्म  दे  जितने जिंदगी हालात जो बदत्तर लगे तेरा साथ हो साथ वो भी बेहतर लगे चले वहां, जहाँ मोहब्बत की हवा लगे : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

दिलबरी नहीं

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ये क्या जिंदगी है आशिकी नहीं दिलबरी नहीं धडके दिल कोना कोना मै सुना सारी रात रहा बरसा प्यार फुहारों में मै प्यासा हर बरसात रहा ये क्या जिंदगी है दिलबरी नहीं मुझको ना मिला सही ये सब्र का सिला सही बेसब्र हू बेसब्र हू ये  बरसाते  बिगोए ना इस धडकन का कुछ होए ना ये क्या जिंदगी है दिलबरी नहीं तूफाने औ बिजलियाँ बस यही हिस्सा मिला चाह तो थी मगर पर इश्क मेरी कहानी नहीं चाहतो का यही सिला मिला बस दर्द में हिस्सा मिला ये क्या जिंदगी है दिलबरी नहीं धडकन धडकन पूछ रही ये क्या मैंने किया ठोकर मुझे मिल रही ये क्या मैंने किया दिल की अपनी कह गया बस इतना कहा फिर क्या बुरा किया ये क्या जिंदगी है दिलबरी नहीं धड़कू मै किस आश पे कोई आश रही नहीं ये क्या जिंदगी : शशिप्रकाश सैनी 

अंधेरा घिर आए

अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल कब से दिल ये कह रा है मन सबसे ही गहरा है अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल जिस जिस पे ना बस चले उस पे  केवल हँस चले रोने की इच्छा नहीं हम तो केवल हँस चले अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल इतना ना खो जाइए कुछ से कुछ हो जाइए रात ऐसी हो चले दिन से फिर छुपाना पड़े अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल तुफा है कश्ती भी है जंगल है बस्ती भी है देखो सब कुछ है यही   मन से गहरा कुछ नहीं अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल भूले भटके आए हम घर को कैसे जाए हम कोई है अब साथ ना हाथों अब है हाथ ना अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल : शशिप्रकाश सैनी

दुर्घटना से देर भली

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पिघल गए मुस्कान पे पहली जिसकों सरल भाव थे समझे वो निकली जी गुढ़ पहेली वो चक्रव्यूह की व्यूहरचना है प्राण बहुत मुश्किल बचना है हाड मॉस को मोम है समझी आग दे रही भट्टी में मिट्टी से आकार हुआ हूँ उसके साँचे में ढालना ना चाहे मील जाऊ फिर मिट्टी में रंगरोगन दीवारे रंग दी पल भर की खुशी ने दुनिया ही बदल दी कैंची बन चली रिश्तों पे कि रिश्तों की डोर काटने लगी अपने अतीत से मेरा अतीत पाटने लगी दोस्तों की फेहरिस्त बदल दी गई कैंची दोस्ती पे भी चली दुनिया की नज़र में कहने को उसकी पहचान बदली नाम मेरा पीछे लगाने लगी डमरू बजा के बन्दर बनाया है सरे बाज़ार नचाने लगी गर बनना चाहते है बंदर नहीं इशारों पे नाचना नहीं आता है रास सौ बार सोचे आंखे मले आज की हूर परी कल डायन न बन निकले उसी से बात बढ़ाईए जो मन जचे  हुस्न की जादूगरी से बचे हड़बड़ी में ये रेखा न पार करे बात बढ़ाए जहाँ प्यार करे दुनिया की रफ़्तार में ना खोए भले रहे गाड़ी खड़ी की खड़ी दुर्घटना से देर भली : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य

आया हू जवाब दे मै खाली हाथ जाऊंगा नहीं

आया हू जवाब दे मै खाली हाथ जाऊंगा नहीं  हां नहीं तो ना दे कोई वजह मै पत्थरऊंगा नहीं  मै भी हू दिल-ए-दर्द का शिकार आदमी  किस से मिला है क्या मै बताऊंगा नहीं  जल गई मिट्टी मेरी उसने आग दी इतनी  मै पनघट पे सरो पे नज़र आऊंगा नहीं  रात धधकी तो दिन में राख मिली है  कहा दिल की चिता जली मै दिखाऊंगा नहीं  ढूंढते रहे जहां में न मिली चीज़ मोहब्बत  अफवाहों पे अब दिल का किला बनाऊंगा नहीं  : शशिप्रकाश सैनी

जलता हू जलाने को

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लगी दिल दुआ नहीं फिर मौका हुआ नहीं  दिल धड़का नहीं फिर  हम हो गए पत्थर  जब चलेंगे चोट देंगे  या रहेंगे देवता बनकर  पूजो चढ़ाओ फूल दिनभर  नहीं तो होगा वही  फिर खुलेगी आँख तीसरी  आग बस आग हू  मै जब छूलू जिसे  बना दू राख जलकर  दूर ही रहो मुझसे  कुछ नहीं बचाने को  जलता हू जलाने को  : शाशिप्रकाश सैनी

शिक्षक दिवस दोहे

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ब्रम्हा का धर रूप ये, श्रृष्टि सारी रच दे विष्णु बन के पालते, दूत हुए सच के कक्षा में जब पाप था, बढ़े जब दुर्व्यवहार डमरू इनका डोलता, शिव होके संहार बीज बढ़ा पौधा हुआ, अब होने को पेड़ कालेज और नर्सरी, बरसों बांधे मेढ बचपन से आकार दे, पानी माटी खाद पौधा बने न ठूठ रे, बना रहे आबाद बबूल से ना पेड़ हो, बने रहे हम आम बरसों से है सीख दे, शिक्षक जगत तमाम : शशिप्रकाश सैनी 

मै प्रेम अंधेरा

ये अंधेरा प्रेम का बरसों बरस गहरा रहा किस्मत भी न कह रही कोई आ रहा कोई आ रहा मै रहा उस मोड पे बरसों बरस ये सोच कर कोई धड़कने सुन ले मेरी मेरी खामोशियाँ खामोश कर पहर दोपहर शाम भी मचलते दिल देखे तमाम जी बाहों में बाहें वो थे प्रेम तराने वाले मालूम अब चल पड़ा था कुछ और चाहती है दुनिया न भाते दिल दिखाने वाले मै प्रेम अंधेरा वो रोशनी कब आएगी नभ पे मेरे भी चाँद हो चाँदनी बरसाए जी : शशिप्रकाश सैनी

घोटाला चालीसा

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कोयला लूटे लूट रहे थे 2G इतने से न भूख मिटे लूट चले तब तक जब तक डायन की मर्जी जी न नियम न कानून कही अब की पूरी हद कर दी 40 लाख थोरियम खाए जितना हो उतना भर लाए नदी नहर और पेड़ पहाड़ सड़क सड़क ये लूटे यार लूटन की इच्छा हो मन में लूट चले पूरा संसार कोयला खाया लोहा खाए अब खाए तांबा और जस्ता अंग्रेजो ने खाया ढेला ये चट पहाड़ करे रानी की जो जितना करता जय है उतना हिस्सा उसका  तय है  : शशिप्रकाश सैनी