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Showing posts from July, 2012

चल संडे मना

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ऑफिस की मजबूरियां  ऑफिस छोड़ आ  घुट घुट के जीना है क्यों  चल संडे मना  दौड़े दौड़े थक गए  रुक जाए जरा  मै गाऊ गाना नया  धुन तू भी सुना  बाइक कब से कह रही  चल हाइवे पे चल  दौड़े सरपट हम ज़रा  कर थोड़ी हलचल  चल थोड़ा माहोल कर  ले नंबर ले कॉल कर  जेंटल मैन बनना नहीं  फिर पंटर बुला  मछली सारी मारने  पोखर मै चला  कीचड़ में खेला कूदा  बच्चा हो गया  धड़कन कब से कह रही  धड़कन की भी सुन  चल गाएं गाना नया  धुन चल तू भी बुन  : शशिप्रकाश सैनी

पत्थरों पे प्रेम के फूल न होंगे

पत्थरों पे प्रेम के फूल न होंगे बेवजह पानी खाद न दे   वो बेदिली की तस्वीर है सर न झुका कोई फ़रियाद न दे   सुना दिल का हर कोना रहा उसका होना भी न होना रहा   जहन में उसे बसाना भी क्या याद करने को याद न दे   : शशिप्रकाश सैनी

ये कौन सा लुटेरा

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कितने है लुटेरे ये कौन सा लुटेरा   खाकी मे थानेदार कही खादी मे भ्रष्टाचार कही जेल हो गए होटल से ये आते है जाते है कल जो चारा खाते थे अब कोयला भी खाते है कितने है लुटेरे ये कौन सा लुटेरा     सड़क सड़क कोना कोना ये मांगे हाथ बढ़ा के ऐसे आए वैसे आए बटुए मे पैसे आए गांधी बस नोटो पे भाए और नहीं पच पाए    रक्षक जब हो जाए भक्षक किस से आस लगाए कितने है लुटेरे ये कौन सा लुटेरा     नौकर भी पूरे शाह हुए इतने बेपरवाह हुए     नौकर पूरे सीना ताने मालिक को मालिक न माने मिल गई सारी नदिया ये पाप की देश लूटते ऐसे जैसे संपत्ति बाप की कितने है लुटेरे ये कौन सा लुटेरा     गोदामो मे सड़ रहा अनाज देखिये कल भी छटपटाया था भूख से तड़पता आज देखिये मुक बधिर दिल्ली और दिल्ली का गूंगा सरताज देखिये कितने है लुटेरे ये कौन सा लुटेरा     : शशिप्रकाश सैनी 

पत्तों में नहीं हलचल बहती कोई बयार नहीं

पत्तों में नहीं हलचल बहती कोई बयार नहीं स्याह अस्मा मेरा सूरज उगने को तैयार नहीं धडकनों ने बहलाया बरगलाया और क्या दिया किस्मत का तमाचा रहा मेरे हिस्से में प्यार नहीं : शशिप्रकाश सैनी 

धृतराष्ट्र सिंहासन हुआ

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तिहाड़ के कमरों से कैदी जा रहे विदेश अब ओलंपिक भी कराएगा भ्रष्टाचारियों की रेस धृतराष्ट्र सिंहासन हुआ और राजमाता  सवार्थी अर्जुन अन्ना हो गए बाबा हुए है सारथि क्या खूब थानेदार है जानता पे जुर्माना लगे चोर चोरी कर रहे कोई उंगली उठाए ना जो उंगली करे उस पे  ही धारा लगे चोर थानेदार को जनता    से भी प्यारा लगे धृतराष्ट्र सिंहासन हुआ और राजमाता  सवार्थी जज भी वो मुजरिम भी वही इल्जाम  न लगाइए इल्जाम जो लगाइए तो सबूत तगड़े लाइए सबूतों को स्वाहा करे जनता जब भी आह करे सत्ता वाह वाह करे धृतराष्ट्र सिंहासन हुआ और राजमाता  सवार्थी दिल्ली अब सुनती नहीं  मूक बधिर हो गई  उंगलिया कटने लगे  की मुट्ठी में कर लो ताकतें एकता का बल दिखा  अब नयी हलचल दिखा  कान के पर्दे हिले  आवाज़ होनी चाहिए बेहतर कल की कोशिशें आज होनी चाहिए अर्जुन अन्ना हो गए बाबा हुए है सारथि : शशिप्रकाश सैनी

सारी गलती रेल की

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एक को छोड़न दस चले दस को छोड़न सौ दो चले थे आदमी झोला दस ठे हो बोरी में गेहू भरे और भरे जी दाल जैसे मिलना कुछ नहीं शहर हुआ कंगाल पेंट्री सारी मर गई एंट्री कैसे हो खाना ले कर सब चले दिन दो हो या दो सौ सड़ा गला सब खाइए बोगी भी महकाइए  खर्चा कैसे हो दिन दो हो या दो सौ एक टिकट पे दस चले दस पे चलेंगे सौ क्या कटेगी पावती जब गाँधी जेबो में हो रेल बाप की हो गई जितना हो भर लो गर्मी की छुट्टी हुई मुलूक चलेंगे भाय ट्रेन रुकेगी हर घड़ी जिसका जब घर आए चैन पुलिंग है हक यहाँ हक से खिचो जी एक्सप्रेस को पसेंजेर करू ये मेरी मर्ज़ी सारी गलती रेल की लेट हुई तो लेट आग लगा के राख करू कर दू मटियामेट रेल भला भी क्या करे जब पसेंजेर ऐसा हो : शशिप्रकाश सैनी   Click here   for 1st part

भैया लेलो टिकट

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(भारतीय रेल यात्रीयों पे कविता का पहला भाग) एक बर्थ और एक सीट पे कितनी है झिकझिक कितने वेटिंग लिस्ट चल न दे विंडो सीट पूरी न आधी दे दे कुछ दे आर ए सी दे दे स्लीपर से ना हो पाए चल ए सी का टिकेट कटा स्लीपर है चालू जैसा ए सी में लगता पैसा मंजिल से मजबूर हू मै धीरे धीरे आऊंगा उड़ जाऊ हर बार उडु इतना भी न है  पैसा सुंदरी हुई रेल बहुत इतराए नखरे दिखाए जनता भी हो बावली पीछे दौड़े आए   बेटिकट चलना पाप है टी टी इस हसीना का बाप है जुर्माना टुकेगा हो जाओगे जेल भैया लेलो टिकट Without out fail प्याज टमाटर कट रही मिर्चा भी कट जाए गन्दी करे ये रेल इनको खानी भेल गन्दा ये केबिन करे जैसे टिकट नहीं है ली ट्रेन खरीदी जी शाशिया देखो मुँह फूला कब से है गुस्साए जल्दी से दुरी कटे घर को पहुचे भाय : शशिप्रकाश सैनी Click here  for 2nd part 

एक वही तस्वीर और जीना वही दुस्वार था

एक वही तस्वीर और जीना वही दुस्वार था जिसे देखना बेकार था जिसे चाहना बेकार था  अक्ल कब से कह रही  फाड़ो टुकडे  टुकडे करो दिल है की सुनता नहीं तस्वीर बस निहारता  : शशिप्रकाश सैनी 

ट्रेन है मेरी चलना होगा

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दुनिया कहेगी बावला मुझको  जब भी मै  होता हू  घर छोड़ने को   शहर मेरा  रोता है  बरसता   है बहोत जिसकी गोदी में खेला दिन रात झेली गर्मी और झेली बरसात  लड़कपन की मेरी दोस्ती रही  यौवन का रहा साथ मेरे शहर से मेरा कुछ यु है रिश्ता अक्ल वालो को नहीं समझता  बड़प्पन आया है  अपनी सजाए भी साथ लाया है  शहर छोड़ना होगा   उस भीड़ में  जाना है  जहा हर शख्स पराया है  बिछड़ना बरसात ले आता है आँखों से छलकते ज़ज्बात ले आता है  वो भी है नाराज़ नहीं मै भी हू नाराज़ नहीं जानते है बस अगर चलता  हम बिछड़ते थोड़ी ट्रेन है मेरी चलना होगा  कुछ समय के लिए बिछड़ना होगा  पनवेल मेरा घर लेता हू विदाई तुझ से  मुझे तू याद आएगा तुझे मै याद आऊंगा  लोगो को रहने दो समझदार बहोत मुझे अपने पनवेल से है प्यार बहोत : शशिप्रकाश सैनी 

रूपया चला विदेश

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Photo Courtesy: TOI क्या खूब ये बाज़ार है अगर माँ को है पूजना  पिता के लिए प्यार है बस एक डे का इंतज़ार है चाकलेट केक और बूके  प्यार के पैमाने हुए  ये याद नहीं कब लिए  थे आशीर्वाद आखिरी  कब पैरो पे झुके झुकना शान नहीं  अकड़ना मान है नया दौर है पैर छुना अपमान है कहते है आपा धापी में वक़्त निकालना  नामुमकिन  इसलिए हर रिश्ते पे दिन  पूछते है इसमें पाप क्या बाप सिर्फ फादर डे बाकी दिनों बाप  ना  माँ के लिए मदर डे बाकी  सब सन्डे सिस्टर ब्रदर दादा दादी अब किसको कब प्यार दो छीन कर तेरी आजादी कंपनिया करेंगी तय  कार्ड बीके केंडल बीके लाली  और सेंडल बीके  भेड़  चाल   हम चल रहे बिक जाए सारा देश रूपया   चला विदेश  कोला और बर्गर हुआ  KFC  देगा बांग ले मुर्गे की टांग  तेरी जबे लुटने  आए शेर सवार तू बड़ा व्यापार खर्चे बड़े तू कर पर जब भी तू खर्चा करे इनकी जेबे भर  दिवाली होली हुई न लड्डू न बर्फी हुई चाकलेट पेस्ट्री हुई तू हुआ  व्यापार  बहना का अब प्यार  राखी है त्यौहार  हलवाई भूखा मरे दे बस च

चाल में चंचल रही

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My 1st attempt at Sonnet चाल में चंचल  रही  रस घुले जब बोलती  धडकनों हलचल रही  किवाड़ दिल के खोलती  खिड़कियो में जब खड़ी रास्ता वो हो गया  आँखों से आंखे लड़ी मै उन्ही में खो गया  कॉल पे अब कॉल जी  जानेजा डार्लिंग हुई मै हुआ बेहाल जी जब भी वो रोमिंग हुई मै सुखी जमी वो मौसम-ए-बरसात है धडकनों में धड़कने वो दिल-ए-ज़ज्बात है  : शशिप्रकाश सैनी 

मेरे संग्रह से कुछ मेरी पसंदीदा कविताए

  मेरी कुछ कविताए है जो मेरी ही कविताओ तले दब गई है  मैंने कुछ ज्यादा ही  तेज़ी  से  कविताए  लिखता गया और ये दबती गयी  अब ऐसा नहीं है की मै जान भुझ के इतना तेज़ लिख रहा था  क्या बताऊ जब से बनारस गया हु वहा की हवाओ में कुछ ऐसा है की हर बात पे कविता हो जाती है कुछ दिन हुए मैंने अपनी किताब 'सामर्थ्य' Pothi.com के माध्यम से प्रकाशित की किताब का e-book version नीचे दिए गए लिंक पे निशुल्क उपलब्ध है सामर्थ्य (e-book) अगर आप किताब खरीदने के इच्छुक हो तो किताब प्रिंट ओन डिमांड में नीचे दिए लिंक पर उपलब्ध है किताब आप तक पहुचनें में ६-७ दिन लग जाएंगे  सामर्थ्य (Print on Demand) मुझे जो पढ़ते है उनके लिए  मेरे संग्रह से कुछ मेरी पसंदीदा कविताए गर तुझको साधू होना है छण भंगुर संसार है बेटा मोह लगा के रिश्ता पाला अंतिम में सब दुख ही देता हर कोने से कष्ट कहानी छोड़ दे कोना कर मनमानी चल मेरे संग साधू हो जा छण भंगुर संसार है बेटा काशी जरा सी बनारस  को जीना है तो आपको बनारस आना पड़ेगा  वरना कहानी से कविताओं से या चित्रों से आप सिर्फ जरा सा अनुभव कर सकते है 

दोहे : मात पिता मोती रहे

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Photo Courtesy: Law is Greek माँ की ममता है बड़ी , दस दस बेटे पाल बेटो से ना हो सका , माँ का करे खयाल बाल मेरा बलवान हो, खाले सब पकवान माँ को अब रोटी नहीं, मिलता बस अपमान  पापा का प्यारा रहा, कंधो झूला झूल  बीज आम का देखिये, होने लगा बबूल प्यार ममता जोड़ जोड़, घर था जिसे बनाय अपनों ने धोखा दिया, बुढा किस दर जाय जड़े न अपनी खोदिये , तना तना रह जाए  माटी लगे है छुटने, किसको देगा छाय मात पिता मोती रहे, कैसे दे हम खो हाथ रहे सर पे मेरे, हर घर ऐसा हो  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अब नहीं फुर्सत कोई वो धडकनों मे हो गयी

  अब नहीं फुर्सत कोई वो धडकनों मे हो गयी दिन अठखेलिया हुई रात बहो मे सो गयी प्यार पे टूटा मेरे जज़्बात सारे ले गया छोड़ के दुनिया चली वो आँसुओ भिगो गयी : शशिप्रकाश सैनी

कब तक मचलते अरमान देखू

कब तक मचलते अरमान देखू सर उठाऊ खाली आसमान देखू मेरा चाँद अब तक अमावस मे है ज़िंदगी कितने तेरे इम्तिहान देखू : शशिप्रकाश सैनी

दरिंदगी बेखौफ है

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  Photo Courtesy: TOI ये हुआ क्यू  इंसा की खाल मे भेड़िये समा गए   पहले की छीटाकसी फिर नोचने पे आ गए क्यू क्यूकी डर नहीं है जानते कुछ करलो होना कुछ असर नहीं है कानून का डर था नहीं भीड़ से कुछ होना नहीं यू भीड़ मे छुपेंगे और जमीर न जग पाएगा हर रेंगता कीड़ा नोचेगा काट खाएगा आज का कीड़ा कल जानवर हो जाएगा       आज फिक्र नहीं की कोई और है कल होगी बहन बेटी बहू घर की हर कीड़ा जानवर हो जाएगा क्या हालत हो जाएगी शहर की वर्दी के भरोसे क्यू रहना वर्दी काम नहीं करती बस लूटने मे आराम नहीं करती वर्दी काम नहीं करती जो रक्षक हो गया भक्षक      वो क्या बचाएगा    अब की कोई कान्हा न आएगा गर गुंडई को हद मे लाना था आम आदमी को अपना हथियार उठना था   दुनिया को बताना था भीड़ की ताकत है क्या जूते चप्पल औजारा थे उठाना था चलाना था सजा लाठी गोलियो से बड़ी हो जाएगी जनता जब चप्पल चलाएगी गर भीड़ थी दोषी तो आप भी निर्दोष ना जूते चप्पल आपके भी चलने थे पर चलता रहा बस कैमरा कर बहाना कर्म का धृतराष्ट्र आप हो गए द्रौपदी ल