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Showing posts from February, 2012

दिल के कुछ सवाल हैं

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वो कहेंगीं क्या वो सुनेंगी क्या मेरे साथ वो चलेंगी क्या क्या अलग हैं उसका रास्ता क्या समझेगी दिल का वास्ता न हिसाब हैं न किताब हैं सब सही कुछ है गलत नहीं कुछ दिल के सवाल हैं कुछ दिल से जवाब दे कुछ हसीन से ख्वाब दे न परदे है न बेडियां हैं न बंधन न कोई आजाब हैं बस खुलीं दिल-ए-किताब हैं न ताले हैं न पिंजरे हैं न चाबियों का हिसाब हैं आजाद परिंदा हू साथ उड़ चल बस यही एक ख्वाब हैं दिल के कुछ सवाल हैं उसे चाहिएं बस जवाब हैं : शशिप्रकाश सैनी 

कन्यादान मुनिया का

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पुत्री होना अब भी अपराध दुनिया का, हैवानों के घर ना कीजिए कन्यादान मुनिया का. कन्यादान महादान ना समझेंगें शैतान, मुनिया गुणों की खान मुनिया लक्ष्मी समान, मांगते वो दौलत इतना भरा लालच चाहें जाए मुनिया के प्राण. जब गूंजीं थी पहली किलकारी मुनिया तब से घर की दुलारी, कभी बकईयां चलना कभी पापा के कंधों की सवारी, मुनिया भईया की प्यारी मुनिया घर की दुलारी. वर को ना गड्डियों से ना सोने से तोलो, जहाँ बिक रहा हो शौहर वहा से दूर हो लो. गर आपने मांगे मानी है डोली में गड्डियाँ डाली है, जान लीजिए आपने डोली नहीं मुनिया की अरथी निकली है, दहेज लोभियों से बचाएं ऐसे घर ना भजे मुनिया को जिंदा ना जलाए. भाई के लिए राखी है माँ की नानी होने की इच्छाएं बाकि है, मुनिया के भी कुछ अरमान है थोड़ी सयानीं है थोड़ी नादान है मुनिया घर की शान है, कन्यादान महादान ये जान जाइए, बेटी लाइए बहु, मत लाइए किसी की मुनिया को न सताइए, आपकी भी मु

कभी चंचल कभी चतुराई हैं

प्रियतमा मन पे  यू छाई हैं अठखेलियां उसकी दिल में समाई हैं चाल लगे मृग्नी सी कंठो में शहनाई हैं जाने किस जहां से आई हैं कभी चंचल कभी चतुराई हैं खुदा दिखने लगा हैं उसमे दिखने लगी खुदाई हैं उसके साथ ही तो ज़िंदगी जी हैं उससे पहले तो  बस ज़िंदगी बिताई  हैं : शशिप्रकाश सैनी

ये आज का युवा हैं

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आंधी हैं हवा हैं बंधनों में क्या हैं ये उफनता दरिया हैं  किनारे तोड़ निकला हैं मस्ती में मस्तमौला हैं मुश्किल में हौसला हैं अपनी पे आजाए तो जलजला हैं ये आज का युवा हैं कभी बेफिक्री का धुआँ हैं कभी पानी का बुलबुला हैं कभी संजीदगी से भरा हैं ये आज का युवा हैं पंखों को फडफडाता हैं पेडों पे घोंसला बनाता है अब की उड़ना ये चाहता हैं दाव पे ज़िंदगी लगता हैं हारा भी हैं तो इसे जीतना भी आता हैं जर्रे से अस्मा हो जाता हैं ये आज का युवा हैं कभी इश्क बोतलों में नशा हैं कभी मै दिलजलो की दवा हैं कभी प्यार अस्मा से बरसा हैं जैसे खुदा की दुआ हैं ये आज का युवा हैं : शाशिप्रकाश सैनी

रूह मेरी तेरी रूह की दीवानी हैं

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जिस्म के साथ जीना हैं मुश्किल पर रूह के साथ ये ही आसानी हैं की दुनिया की हर मनमानी बेमानी हैं रूह मेरी तेरी रूह की दीवानी हैं आगाज़ हैं तू  तू ही अंजाम सासों तक में तेरा नाम धडकनों में प्यार का पैगाम तेरी बाहों में आए ज़िंदगी की शाम एक दिन मिट जाएगी इतनी कमजोर जवानी हैं रूह मेरी तेरी रूह की दीवानी हैं : शशिप्रकाश सैनी

हम दुनिया की निगाहों से इस कदर डरते रहे

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हम दुनिया की निगाहों से इस कदर डरते रहे आईने मैले थे और हम चेहरा साफ़ करते रहे उसके बज़्म में दुनिया दीवानी ऐसी थी जवानी एक हम भी उसकी हर अदा पे मरते रहे वो देते गंगा नहाने की सीख दुनिया को और  छुप-छुपा के पाप का घड़ा भरते रहे दुनिया से लड़कर लाया तक़दीर हाथों में “सैनी” मगर याद में उसकी लम्हा लम्हा बिखरते रहे : शशिप्रकाश सैनी