मंदबुद्धि इंजिनियर



खिलौने तोड़ता था
उन्हें जोड़ता था
यहीं थी उसकी जिंदगी
इन्हीं में कपार(सर) फोड़ता था
दराज टुकडों से पटी
ना जाने कितनी दुर्घटनाएं घटी
लड़का होशियार था
बस creativity का शिकार था


इंजिनियर बनने की चाह
पकड़ीं सही राह
भौतिकी में जादूगरी
रसायन से बाजीगरी
विविध शास्त्रों से खेलने लगा
दिन ब दिन नये तार छेड़ने लगा
प्रयोग कुछ हो गए सफल
कुछ रह गए अफसल
कहता समंदर की लहरों पे सपने तैराऊंगा
उन्ही से बिजली बनाऊंगा


जब उसे आया
Swing Type Generator  बनाने का Idea
प्रोफेसर से बात की
उसने उसे H.O.D के पास दिया
H.O.D ने समझाया
व्यर्थं में ना समय गवाओं
किताबे रटो और  Marks लाओ
कॉलेज को नहीं चाहिए था कोई innovator
उनकी मांग थी ज़्यादा मार्क्स वाला
मंदबुद्धि Engineer


साथियों ने छेडा
ये बनेगा मोहन भार्गव स्वदेस का
पानी से बिजली बनाएगा
भाग्य रोशन करेगा प्रदेश का
अभी जख्म नहीं हुए थे heal
तभी Semester ने ठोक दी आखिरी कील


ख्वाब उम्मीद और ज़ज्बा
सब year drop में बह गया
Innovation ढह गया
बस मंदबुद्धि इंजिनियर रह गया
फिर सिर्फ किताबे रटी
ज़िंदगी बस इम्तेहानो तक सिमटीं


उसने भी ले ली
मंदबुद्धि इंजिनियर की Degree
जिन हाथों में ताकत थी
डोर खीचने की
अब वो रह गयी बस कठपुतली
मैंने भी आखिरकार  ले ली
मंदबुद्धि इंजिनियर की डिग्री


: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. Ahha
    Behtareen peshkash
    Aapka Engineer behad pasand aaya

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  2. Nice one, Shashi. Inspired by 3 idiots?

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  3. wah purane din yaad a gaye !!!
    Awesome play with words !!!

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  4. Khub likha. Main bhi ek mandbudhi engineer hun!!

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  5. Ek engineer se behatar iss kavita ko kaun samajh sakta hai... really amaging shashi ji... :)

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