Posts

Showing posts from January, 2012

बात दिल की दिलों में दबी रह गई

Image
बात दिलों की दिलों में दबी रह गई ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई उसने जलाया भी नहीं उसने बुझाया भी नहीं मोहब्बत आग ऐसी आत्मा अधजली रह गई जब तक पत्थर था तो मंदिर का देवता हीरा हुआ हाय कीमत मातमी रह गई पड़ोस की खुबसूरती जब खिडकियों पे आये जन्नत जमी हुई साँसे रुकी की रुकी रह गई याद उसकी अब तक हैं सीने में “सैनी” चेहरा दिल में आँखों में नमी रह गई : शशिप्रकाश सैनी

सीने पर ज़ख्म हैं और वार कई हैं

सीने पर ज़ख्म हैं और वार कई हैं मगर उसके हाथो में कोई हथियार नहीं हैं ज़ुल्म ये किया उसने जो कह दिया उसने यार हैं पर तू प्यार नहीं हैं तब से उसका दीदार नहीं हैं मोहब्बत चीज़ क्या अब खुदा पे भी ऐतबार नहीं हैं : शशिप्रकाश सैनी

तनख्वा लड़ नहीं पाती अब महीने से

तनख्वा लड़ नहीं पाती अब महीने से दाल के दाने लगने लगे हैं नगीने से जहर पीने की हिम्मत जब करू घर की याद रोक देती हैं जहर पीने से जो लुट रही हैं दौलत वो निकली हैं जनता के पसीने से जलेगी भ्रष्टाचार की लंका की अब सबक ली हैं बाबा के अंदाज़-ए-जीने से कोई युवराज न सिखाए पाठ देशभक्ति का लगाए रखते हैं हर वक़्त भारत माँ को सीने से : शशिप्रकाश सैनी

हाथो में कोई हाथ नहीं

हाथो में कोई हाथ नहीं किसी भी सूरत पे लुटाता नहीं हू दिल अब उभरते कोई जज़्बात नहीं मन को बहका सके आते वो ख़यालात नहीं जाने क्या हो गया हूँ मै या तो पत्थर हो गया हूँ  या कोई देवता हूँ मै : शशिप्रकाश सैनी

हम समझदारी की चादर में लिपटे रहे

हम समझदारी की चादर में लिपटे रहे हम ने कोई बेवकूफी न की बस दिमाग की सुनी दिल की न सुनी देने वाले ने इतनी अक्ल दी कि अब तक की ज़िन्दगी अकेले है जी जब किसी ने विस्मित किया भरमाया किसी पे दिल आया अपने जज्बातों पे डाल दी मिट्टी इतनी हमे अक्ल क्यों दी कवि होने की ये व्यथा रही बात जो जुबाँ की थी हमने कागजों पे उकरे दी इश्क बेवकूफों की सौगात थी उसने हमे थोड़ी भी बेवकूफी न दी : शशिप्रकाश सैनी

खोने के लिए

खोने के लिए उसको पाना ज़रुरी था दिल से उसका हो जाना ज़रुरी था जिसे पाया ही नहीं उसे खोऊ कैसे आँखों बहे आसू क्यों और मै रोऊ कैसे :शशिप्रकाश सैनी

इस तरह जिंदगी बिताई हैं

उसने दी हैं और हमने लुटाई हैं जिंदगी कुछ इस तरह से मुस्कुराई हैं बारिसे ऐसी बरसाई हैं धुप खिड़कियों से यूँ छन के आई हैं यूँ लगता सीने में खुदा हैं मेरे हाथो में खुदाई हैं जो दोनों हाथो लुटाई हैं  इस तरह जिंदगी बिताई हैं : शशिप्रकाश सैनी

ये नहीं मालूम क्या होगा उसके जाने के बाद

ये नहीं मालूम  क्या होगा उसके जाने के बाद पर ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी थी  उसके आने के बाद आइने घर के हमारे मुस्कुराने लगे की हम भी अब इंसा नज़र आने लगे जाने क्या हो गया था  हमको प्यार हो जाने के बाद : शशिप्रकाश सैनी

दिल को लगी अब की मोहब्बत की बीमारी हैं

Image
दिल को लगी अब की मोहब्बत की बीमारी हैं बटुआ कराहे हैं मेरा की तेरा इश्क बड़ा भारी हैं कभी लूटे हैं KFC में कभी आए MacD के काम मेरी महबूबा बड़ी भुक्कड़ हैं ये जनहित में जारी हैं सिनेमा में लुटाती हैं प्यार जैसे हो मंदिर के द्वार कभी रणबीर की दीवानी कभी इमरान की खुमारी हैं Bike हैं मेरी त्रसत हमेसा रखती हैं उसको व्यस्त सुना है पेट्रोल के मुनाफे में लडकियों की हिस्सेदारी हैं बहोत कराती हैं खर्च बटुए को लगा हैं मर्ज इस बार तेरी अच्छी Bad Debt की तैयारी हैं Inflation हैं तगड़ा छोड़ दे रुपये से झगडा "सैनी" मोहब्बत इश्क प्यार इनदिनों बड़ा हानिकारी हैं : शशिप्रकाश सैनी

कोयलिया जब गाती हैं

Image
चल झूठ रूठना है तेरा आंखें सब बतलाती है कोयलिया जब गाती है याद मीत की आती है आँखों से अब ना आस गिरा बातों पे रख विश्वास जरा जाने दे मत रोक मुझें सर पे दुनियां दारी है कोयलिया जब गाती है याद मीत की आती है न तू भूलीं न मैं भुला जब झूलें थे सावन झूला मौसम अब के बरसातीं है कोयलिया जब गाती है याद मीत की आती है चलतें थे तट पे साथ प्रिये नटखट हाथों में हाथ प्रिये लहरें तब भी आती थी लहरें अब भी आती है कोयलिया जब गाती है याद मीत की आती है तू कितनीं है दूर बड़ी है कैसी ये मजबूर घड़ी सपनोँ में तू जब आती है मुझकों बड़ा सताती है कोयलिया जब गाती है याद मीत की आती है : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

मंदबुद्धि इंजिनियर

Image
खिलौने तोड़ता था उन्हें जोड़ता था यहीं थी उसकी जिंदगी इन्हीं में कपार(सर) फोड़ता था दराज टुकडों से पटी ना जाने कितनी दुर्घटनाएं घटी लड़का होशियार था बस creativity का शिकार था इंजिनियर बनने की चाह पकड़ीं सही राह भौतिकी में जादूगरी रसायन से बाजीगरी विविध शास्त्रों से खेलने लगा दिन ब दिन नये तार छेड़ने लगा प्रयोग कुछ हो गए सफल कुछ रह गए अफसल कहता समंदर की लहरों पे सपने तैराऊंगा उन्ही से बिजली बनाऊंगा जब उसे आया Swing Type Generator  बनाने का Idea प्रोफेसर से बात की उसने उसे H.O.D के पास दिया H.O.D ने समझाया व्यर्थं में ना समय गवाओं किताबे रटो और  Marks लाओ कॉलेज को नहीं चाहिए था कोई innovator उनकी मांग थी ज़्यादा मार्क्स वाला मंदबुद्धि Engineer साथियों ने छेडा ये बनेगा मोहन भार्गव स्वदेस का पानी से बिजली बनाएगा भाग्य रोशन करेगा प्रदेश का अभी जख्म नहीं हुए थे heal तभी Semester ने ठोक दी आखिरी कील ख्वाब उम्मीद और ज़ज्बा सब year drop में बह गया Innovation ढह गया बस मंदबुद्धि इंजिनियर रह गया फ

कुछ अंगडे ख्याल हैं

Image
जो बोतलों में हैं नशा वो प्यालो में दे हुस्न की जादूगरी कुछ हकीक़त कुछ खयालो में दे मेरे पास कुछ सवाल  कुछ अंगडे ख्याल हैं जवाब नहीं अगर सवालों का जवाब सवालो में दे : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

गर आसुओं को अपने पत्थर बना लेते

Image
गर आसुओं को अपने पत्थर बना लेते जान लिजिए जिंदगी बदत्तर बना लेते कहते नहीं सुनते नहीं दुनिया में घुलते नहीं क्या उसकी याद में खुद को खंडहर बना लेते दिन निकला रोशनी के साथ रात आई चाँदनी ले कर छोडकर पुराने किस्से किसी एक को दिलबर बना लेते उड़ने की आरजू थी डूबने का जज्बा था ख्वाबो को कभी पर कभी समंदर बना लेते गर घर बसाओगे तो उजड़ जाएगा "सैनी" चलो सराय कम से कम सुन्दर बना लेते : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

मन तुम्ही को खोजता हैं

Image
दूर हैं आँखों से ओझल मीत मेरी प्रीत निश्छल पत्र तेरा हाथ लेकर , बस तुझी को सोचता हैं मन तुम्ही को खोजता हैं | हाथ में हाथ थामे बाहों में कटती हैं शामे नव युगल का प्रेम देख , अश्रु अपने पोछता हैं मन तुम्ही को खोजता हैं | प्रेमियों का दिन हैं आया रंग लालिमा का छाया उपवन के गुलाब सारे , हाथ मेरा नोचता हैं मन तुम्ही को खोजता हैं | हैं यहाँ सब पराये जाने कब हम पास आये हैं जुदाई टीस ऐसी , साँप तन पे लोटता हैं मन तुम्ही को खोजता हैं | : शशिप्रकाश सैनी  © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

छन्न पकैया , मेहनत की हैं रोटी

Image
छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की हैं रोटी, कहने को युवराज हैं, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१|| छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग हैं भाई ||२|| छन्न पकैया, छन्न पकैया , आँखों पे हैं चश्मे पुत्र मोह में पुत्री मारे , कितनी घटिया रस्में ||३|| छन्न पकैया, छन्न पकैया , मिलें कंधो से कंधे  छूत अछूत हैं बीती बातें, सब उसके ही बन्दे ||४|| छन्न पकैया, छन्न पकैया, बच्चे खेल न पाते बड्डपन की दीवारों ने हरसू , बाट दिए अहाते ||५|| छन्न पकैया, छन्न पकैया, भट्टी तपता सोना  माँ मेरी घर मेरे आई, रोशन कोना-कोना ||६|| छन्न पकैया, छन्न पकैया, निश्चित बुढ़ापा आना  जोशे जवानी में तुम न, बजुर्गो की हंसीं उड़ना||७|| छन्न पकैया, छन्न पकैया, मस्त कोलावेरी गाना  कानो ने सुना अगर तो , तय होठो पे आना ||८|| छन्न पकैया, छन्न पकैया, जहा दीपिका जाए  छोटा माल्या आगे पीछे, लट्टू होता जाए ||९|| छन्न पकैया, छन्न पकैया, गम ही हिस्से आता चेहरे के सब हाव भाव ही, स्पर्श मेरा ले जाता ||१०||

सवाल करता बहोत देता उसे कोई जवाब नहीं

Image
सवाल करता बहोत देता उसे कोई जवाब नहीं पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं स्कूल की खिडकियों पे लगाए कान सुनता हैं अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता हैं लोग अब भी कहते दुनिया इतनी ख़राब नहीं मिलती उसे पूरी रोटी नहीं भूखा सोता हैं वो जब पेट करे आवाज़ रातो को आते ख्वाब नहीं जरा से दर्द पे छलक जाती हैं आंखे "सैनी" वो तो बच्चे हैं उनके गमो का कोई हिसाब नहीं :शशिप्रकाश सैनी / /मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //