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Showing posts from 2012

दिल 2013 के लिए तैयार है

वही ठंड की ठिठुरन वही रजाईयो में गलन कभी कोहरा कभी बदली किस्मत नहीं बदली धूप पड़ी नहीं दिल-ए-बात बड़ी नहीं एक तो रोजगार का सिरदर्द रहा दूजा दिल-ए-मौसम सर्द रहा जिल्लत रही तनहाई रही बारह की बेवफ़ाई रही न कोई रोशनी न चांदनी कही पूरा साल ही मुझ पे परछाई रही बारह की बेवफ़ाई रही दिल तेरह के लिए तैयार है थोड़ा इन्तेजार-ए-प्यार है थोड़ा इन्तेजार-ए-रोजगार है ठंड जाए गर्माहट बढ़े चार पैसे कमाए बहोत रोटी तोड़ी कुछ हम भी घर लाए जिन उंगलियों को पकड़ अब तक चले वो कंधा बुढा होने को है हम भी कंधा हो जाए जीने को एक और हौसला हो जाए चार पैसे कमाए कुछ हम भी घर लाए इन रुखी सर्दियों का अंत हो सूरज हम पे भी मेहरबान हो मेरा भी बसंत हो : शशिप्रकाश सैनी

मै मंदबुद्धि कवी

जो जीता उसे जीत की जो खेला उसे खेल की देता मै बधाई सभी जीत की रचनाएँ श्रेष्ट बाकी सब कमतर रही ये Surf Matic ने कही बात ये बदत्तर रही खुशबू जहन समझा नहीं नाक तेरी जड़ रही तुझको बस वो ही दिखी जो आँख से सुन्दर रही मै ये कहता नहीं विजेता हकदार न था जीत का गर मेरी समझे नहीं तो शायद समझ कम रही पहले तू ढीला रहा इंतज़ार महीनो किया परिणाम का फिर आया फैसला ईनाम का फिर मिला संदेश ऐसा जैसे घुट अपमान का मै मंदबुद्धि कवी मै न समझू 4 P पर ये जानू मेरी कलम क्या लिख सके क्या लिख सकी मै न समझू 4 P मै मंदबुद्धि कवी : शशिप्रकाश सैनी 

उसको डर है कही आग न हो जाए कल

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उसको डर है कही आग न हो जाए कल कुर्सी जले फिर राख न हो जाए कल चिड़िया जो चुचु करे ट्वीट बस कर पाती थी चोच पंजो हक दबोचे बाज न हो जाए कल लाठी चली बरसात की इंसाफ की जब बात की आज जो उंगली उठी हाथ न हो जाए कल सत्ता डरी न भीड़ से न नारे लगाती रीढ़ से पक्ष था विपक्ष था उसकी खुद की जमात थी आम जनता थी नहीं ये आम सी ही बात थी पुलिस लाठी ले इशारे करे की चुप हो जाइए मुखिया जब गूंगा रहे उसे जनता गूंगी चाहिए अब हवा युवा हुई और थपेड़े देने लगे “ सैनी ” छप्पर उड़े माटी करे तूफ़ान न हो जाए कल : शशिप्रकाश सैनी

मेरे दिल की गिलहरी

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रोके रुके ना ना मानें मेरी ठहरी दिल की गिलहरी नज़रे बचा के देखे अंखियां चुरा के देखे छुप के छुपा के देखे मेरे दिल की गिलहरी धड़कन बहाना सारा दिल ये दिखाना सारा सब कुछ बताना यारा तेरा हो जाना यारा तेरे अलावा कोई भाए जरा ना कब से कही री मेरे दिल की गिलहरी छुप छुप के आके देखे बाते बना के देखे बाते बहाना चाहे पास ये जाना चाहे दिल में सामना चाहे ठहरी दिल की गिलहरी मेरे दिल की गिलहरी पास ये जाना चाहे दिल में सामना चाहे तुझको बताना चाहे आए तो आए आड़े आड़े जमाना आए धड़कन के बल पे फुदके रहती न डर के छुप के तेरा मै तेरा होके मेरी तू मेरी होले रोके रुके क्यों क्यों माने तेरी धड़कन तो धड़कन है जी दिल की चले बस मर्जी डाली से डाली कूदे दिल का पाता जी पूछे कब तक छुपा के देखो बाहों में आके देखो दिल की गिलहरी मेरी दिल की गिलहरी तेरी डिंगे लड़ा के देखो रोके रुके ना ना मानें मेरी ठहरी दिल की गिलहरी : शशिप्रकाश सैनी

मेरा चिलम है भगवान

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गम को धुआ बना ले चल चिलम उठा ले ये सुट्टा बड़ा है झुट्टा न आग भुझाए सुट्टा दर्द कराह मिटा ले चल चिलम उठा ले वो पीए तो खून पीए ले इंसानों की जान रंग रूप पे अपनी देखो करती है अभिमान ठोकर मारे दिल तोड़े देता जिसको रंग रूप थोड़ा दिल भी दे भगवान जब सुनता ना मेरी तू तू काहे का भगवान मेरा दर्द मिटाए जो मेरा चिलम है भगवान दारू बोतल झुट्टा सुट्टा मेरा चिलम है भगवान कश कश में धुआँ करा ले जीवन की सारी कशमकश पूजे इसको शाम सुबह पूजे इसको रात न पूछे चिलम धर्म कही न पूछे चिलम जात बस थोड़ा सा सुनगा ले फिर धुआँ लगा ले जो नब्स जरा सी धर ले कष्ट ये सारे हर ले करते है बदनाम इसे बेगैरत सुबह शाम इसे जीना हुआ आसान जब से चिलम है भगवान : शशिप्रकाश सैनी

Not so serious poem (Love for Roomie Trouble for Me)

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Alarms for me at odd hours of night  How can i sleep tight I am single And i thought my future is bright But when your roomie is lover In the love game  you are the one who suffer He gets calls at odd time  Being single becomes a crime  Even on FB i don’t have someone to chat So i go early for sleep But there is emotions even in my Heart Deep deeper and deep But i cant sleep Because my roomie is muttering on a call Worshiping her gal Becoming a thrall Calls are as disturbing  As in winter as in Fall So i pray to the lord  If u give gals Then Give them all Both should have neither should be left Or don’t give them at all So i don’t have to pray for his Breakup So that i can sleep tight But Lord i suppose even you are a Flirt I prayed for Breakup you gave him Another His life became better One in Night one in Noon Now he is macho he is stud I am the Buffoon Now i have to Avenge You are a lover  So be it I

हां मै दीवाना रहू

This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 34 ; the thirty-fourth edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "Of-Course, I'm insane" नफा नुकशान नहीं इंसा हू मै हिसाब किताब मेरे किताबो में रहे मै रिश्तों पे दाव पेच लगाता नहीं मतलब की मतलब से यारी रहे न मुझ में ऐसी समझ न ये समझदारी रहे मतलब निकल जाए और मै अपनों में बेगाना रहू इस से तो अच्छा है मै दीवाना रहू मन की मर्जी पे थिरकने वाला मै दूजे इशारों नाचता नहीं जब भी धडकन ने कही कदमो ने सुनी जिंदगी उस तरफ हो ली मेरा अपना तरीका है मेरी हरकते भी मेरी किसी और की नहीं मेरे पैर पड़े बराबर की टेढ़े पड़े मै ये नापता नहीं चलना मेरी मर्जी मै दूजे इशारों नाचता नहीं मखमली गुलामी मै चाहता नहीं आज़ाद रहू भले विराना रहू हां मै दीवाना रहू घाटो पे बैठता हू घंटो गलियों में गुम हो जाता हू बहोत देख लिए मैंने जानने वाले मै यहाँ खोने आ

गधी भी न नसीब हमको

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एक ये जो रोज घोड़ी चढ़े एक हम की गधी भी न नसीब हमको वो गुड जैसे मक्खियां भिनभिनाती है और हम सच जो बोल गए कोई रखे भी ना करीब हमको मलाल दिल का मलालो में मलाल रहा कभी सुर्ख होठो पे कभी आँखों पे हुए फ़िदा पास जो गए थप्पड़ पड़ा और चेहरा लाल रहा मलाल दिल का मलालो में मलाल रहा हम सीधे कहे कोई बात बनाना न आए उसको घोड़ी चलाना आए हमको ना आए काम कोई बस दिल लगाना आए घोड़ी वालो का सवाल न लगाम न काठ न डोर कोई कैसे रखोगे काबू ये चिड़िया नहीं कमजोर कोई दिल की समझे दिल इसमें क्या जोर अजमाने को वो हो जाए हमारी हम उसके ना रहे कुछ हक जताने को : शशिप्रकाश सैनी  

मै फिर आऊंगा

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कभी कभी पुरानी तस्वीरों से धूल हटाता हूँ  बीती जिंदगी मैं फिर जीना चाहता हूँ, कैसे मैं बच्चा रहा  कैसे हुआ जवान, वो दादी की अठन्नियां वो नानी के पकवान. तब बड़प्पन की बीमारियाँ न थी  क्या खूब जिंदगी थी, किसी कोने में दबे रहने दो  ख्वाब मेरे  मैं फिर आऊंगा, जिंदगी जब  पड़ाव दर पड़ाव छुटने लगती है मैं लौटना चाहता हूँ  उसी कमरे में  समय जहाँ भागता नहीं. दीवार पे सीलन  जाले है मकड़ी के, किसको है फुर्सत  इस तरफ देखे. समझदारी की परत पे  एक छोटी सी सनक है, जो दुनिया के लिए बेकार है वो मेरी यादे है मेरा हक है. एक टोपी है छोटी सी रंग से भूरी है , मगर यादे सुनहरी है  पापा कलकत्ता से लाए थे. वो टोबो साईकिल  जो मेरा ट्रक्टर हुआ करती थी, ख्वाबो लगते थे पर आसमानों उड़ा करती थी . टुकड़ा टुकड़ा है पर मेरा खजाना है भरा धूल हटाने की देर है, मैं फिर रम जाऊंगा घंटो ख्वाबो में रहूँगा  वही धुन गुनगुनाऊँगा. : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click

कौन मनाता है त्यौहार तनहाई में

न अनार न फुलझड़ी न त्यौहार कुछ है न लड्डू न बर्फी न कपडों का उपहार कुछ है चंद नोटों से जुट जाता है सब कुछ दिये घी के रंगीन बत्तियो से पूरी दीवार सजा दू कपडे ले आऊ नये शोर गुल के हो जाऊ हवाले दिखावे के लिए मै भी त्यौहार मना लू दिवाली पटाके नहीं मिठाई नहीं न कपडों से न दियो से क्या कोई त्यौहार परिवार बिन है अपनों से मिलने की खुशी है पिता माँ बहन भाई में सारे त्यौहार इन्ही में कौन मनाता है त्यौहार तनहाई में मेरी भी जेब में पैसे है ए टी एम् है पिन है पर कोई त्यौहार क्या त्यौहार परिवार बिन है : शशिप्रकाश सैनी 

काशी ना छोड़ी जाए

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जितना जिए हम इसको उतना ये दिल में आए धड़कन में धड़के मेरे सांसो में ये घुल जाए काशी ना छोड़ी जाए घाटों की सुबह हो के बनके हवा के झोंकें हमने जी काशी देखी नैया के चप्पू हो के गंगा में डूबकी गोते तैरे जहां पे मन तो ठहरे वहाँ पे मन तो तुलसी पे तुलसी होना चेत कबूतर दाना लहरों की भाषा जानी मन के मुताबिक मैंने जम के जी काशी देखी दिन में था घाटो का मैं शामों गली का हो के स्वाद बटोरे कितनें चाट चटोरे कितनें एक ठंडाई गोली पूरी गले से होली रंगीन चस्का चख के काशी भरे हम इतनी काशी जिए हम इतनी जाए तो ले के जाए काशी ना छोड़ी जाए कविता डुबोई काशी शब्दों फिरोई काशी फोटो भी होई काशी पहर दो पहर ये क्या है हर पल बटोरी काशी काशी ना छोड़ी जाए जो जिले जरा सी उनसे तो ना छोड़ी जाए और जो तरबतर है काशी डूबें है काशी घुलें है उनसे कैसे छोड़ी जाए तन को है रोटी कपड़ा रोटी जहाँ ले जाए मन तो बसा है काशी काशी ना छोड़ी जाए : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook