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Showing posts from November, 2011

खुद अपनी किस्मते बनाई हैं

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सब कुछ माथे की लकीरों में नहीं हैं छुपा  कुछ तो किस्मत हमने भी बनाई हैं कभी पनपते सपनो को भट्टियो में झोखा हैं कभी बुझती लौ के लिए आंधियों से जान लड़ाई हैं कुछ तो किस्मत हमने भी बनाई हैं जब अंधकार था धुत्कार थी  जब हमसे रूठा संसार था  अपने हौसलों पे जिंदगी जी हैं जंगे अपनी अपने दम लड़ी हैं इस तरह थे लड़े  फिर ना ढलान थे ना चढाईयां थी हौसलों से पाटी थी जमीं फिर ना बची कोई खाईयां थी  ये हौसला पैदाइशी हमारे लहू में आया हैं कंकडो को पैरों तले दबाया हैं कटीली झाडियों से रास्ता बनाया हैं किस्मत बनाने के लिए इतना हैं लड़े  की हमने जिंदगी जलाई हैं तिनका तिनका ही सही  पर हमने खुद अपनी किस्मते बनाई हैं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

अकेले हम चले कितना

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अंतरा : हसीं चेहरे हैं इतने की हसीं पूरा जमाना हैं बहोत सुनी हैं हम ने मोहब्बत की दास्ताँ किसी से दिल लगाना हैं किसी से दिल मिलाना हैं सुना था बिना प्यार जिंदगी अधूरी हैं इसलिए प्यार करना ज़रुरी हैं किसी गैर को इस तरह अपना बनाना हैं जिंदगी हैं सफर और हमे पूरा सफर बिताना हैं बचपन से यौवन का सफर किया अकेले उसके साथ बुढ़ापे तक जाना हैं उसके साथ जीना हैं उसके साथ मर जाना हैं की बस चंद सासों का ठिकाना हैं बाहों में बाहे डाल ये सफर बिताना हैं मुखड़ा : किसी का हो जाना था किसी से दिल लगाना था बाहों में किसी के खोजना था लंबा था सफर इतना अकेले हम चले कितना राह के रहगुज़र थे हमे भी साथी बनाना था : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

इश्क हैं ज़रा सा

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ये दिल भी हैं धडकता आंखे भी हैं फड़कती सर पे तेरा नशा हैं चढ़ा सा की इश्क हैं ज़रा सा इश्क की बदली हैं छाई की एक गई तो दुझी आई ढूढने से भी ना मिलेगी मेरे दामन में तन्हाई की ऊपरवाले ने इस तरह से मोहब्बत बरसाई की हो गयी मोहब्बत मेरी परछाई की साया लगता हैं मुझे बदला सा की मुझे इश्क हैं ज़रा सा जो दिल से मिला हो गये उसके न जात देखी न धर्म बाहों में खो गये उसके हाथ पकडे हैं हाथ मोडे गालो पे कईयों के हमने भी निशा छोडे रीत जिंदगी की रीत ये बनाई प्रीत हवाओ में हमने फैलाई जो मीत मिला मनमीत हो गया होठो पे थिरकता गीत हो गया जिंदगी की बस ये कमाई हैं की उसने दी हैं और हमने मोहब्बत बरसाई हैं दिलो में कईयों के हम ने जगह बनाई हैं रगों में नशा इश्क का इस तरह भरा सा की कई बार किया हैं हमने इश्क ज़रा सा : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

I m just a thought

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I can be a window Or a crow Whatever I thought I can be a lot This not my pitch But game is still same Words are my tools I m players without rules I just give them form And there is no norm I can swim I can dance I can play with every glance Language is no bar I will come my love Wherever you are I can play with yours You play with mine If you think I m a poet Then I m not I m just a thought This is my vocab That’s all I got I m stone you can throw A ballon you can blow I am just a feeling Which makes your face glow I m just a thought May be I m nice May be I m not : Shashiprakash saini © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

दीवारे

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ईट दर ईट हम दीवार बना रहे हैं हिफाज़त की कीमत आजादी से चूका रहे हैं कांच के टुकडो और कटीली तारो से घर सजा रहे हैं ईट दर ईट हम दीवार बड़ा रहे हैं रोशनदान छोटे हो गये हैं खिडकियों पे जालियां हैं फिर भी जरा सी सरसराहट से डर जाता हैं आज क्यों आदमी आदमी से मिलने में खौफ खाता हैं खुली हवाओ में रहने से वो इतन खौफ़जदा हैं की आज दीवारों का कद हम से भी ज्यादा हैं एक हल्की सी दरार भी इसे डरा देती हैं आखिर एक दिन दरारे ही दीवार गिरा देती हैं गर खतरा अंदर होगा ये नहीं झुकेंगी और आप दीवारें लांघ नहीं पाएंगे गर जिंदगी दीवारों में जियेंगें तो एक दिन दीवारों में मर जाएंगे जरा सी बात अब लोगो को बरदास्त नहीं सालो के रिश्तों पे ये ईट गिरा देता हैं दिल के करता हैं टुकड़े और दीवारे उठा देता हैं जहाँ भी जाता हैं बस दीवारे बना देता हैं बडों की गलतियों की सजा रिंकू क्यों पाता हैं दीवार पार का टिंकू अब खेलने नहीं आता हैं बड्डपन की दीवारों में बचपन बट जाता हैं बड़प्पन बस दीवारे उठाता हैं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash sa