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Showing posts from September, 2011

मुखौटा हटाओ

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भीड़ में सब मुखौटे हैं इंसा कहा हैं जिसकी सूरत पे सीरत दिखे वो चेहरा कहा हैं खिड़किया यूँ बंद करली हैं की हम खोलते ही नहीं दुनिया से करते हैं बात पड़ोसियों से बोलते ही नहीं न बगल में खुशी न मातम का पता पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी खिड़किया खोलोगे तो हवा आएगी कोई महक कोई चहक साथ लाएगी तुम मुखौटा उतारोगे तब तो वो सूरत दिखाएगी हँसो मुस्कुराओ और चिल्लाओ अगर हिम्मत हैं तो मुखौटा हटाओ दिल के भाव को चेहरे तक आने दो देनेवाले ने दिया हैं बड़े प्यार से इसको भी किस्मत आजमाने दो कोशिशे करने से टूट जाती हैं बेडियां भी थोड़ी कोशिश करो और मुखौटा हटाओ : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

तस्वीर जीना सिखाती हैं

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आँखों से देखती हैं जिंदगी  होठो से मुस्कुराती हैं ध्यान से देखो अगर  तो तस्वीर भी जीना सिखाती हैं जिंदगी बड़ी सीधी हैं पेचीदगी इंसानी फितरत ले आती हैं और दोष इश्वर पे लगाती हैं आँखों से देखती हैं जिंदगी  होठो से मुस्कुराती हैं हो गयी रफ़्तार कम  या चल रहे हो मध्यम  कभी कभी तस्वीर भी  आगे बढना सिखाती हैं आँखों से देखती हैं जिंदगी  होठो से मुस्कुराती हैं चेहरे का भाव  या लटो का फैलाव  ये हर तरह से लुभाती हैं आँखों से देखती है जिंदगी  होठो से मुस्कुराती है हालात कैसे भी हो ये हरदम मुस्कुराती तस्वीर जीना सिखाती है आँखों से देखती हैं जिंदगी  होठो से मुस्कुराती हैं मन पे अपना प्रतिबिम्ब  छोड़ जाती हैं मैले आईनों पे ये कुरूप  नजर आती हैं आँखों से देखती हैं जिंदगी  होठो से मुस्कुराती हैं जब भी देखता हूँ इसे ये अपनी तरफ बुलाती हैं मुझे हँसना मुझे जीना सिखाती हैं आँखों से देखती हैं जिंदगी  होठो से मुस्कुराती हैं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

राजनीति की प्रयोगशाला

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गर आपने दो तीन की ईज्ज़तो पे हाथ आजमाया हो और एक का खून बहाया हो दस का किया हो अपहरण तो आप पास करते हैं राजनीति का पहला चरण गर दो बार किया हैं जेल भ्रमण एक दर्जन आत्माओ को पहुचाने में स्वर्ग आपने की हैं मदद तो आपके लिए हैं नगरसेवक का पद गर कारागार हो दूसरा घर जनता में आपका डर व्यापारी भरते हो सरकार से ज्यादा आपको कर तो विधायक बन विधानसभा में उठाईये स्वर गर kidnaping में हो H.S.C दंगो में किया हो Diploma और भ्रष्टाचार में हो Degree तो इस मंडी में खूब होगी आपकी बिक्री आप सांसद बनेगे शिघ्र ही गर इन खूबियों के साथ साथ चारा खाना आपकी आदतों में सुमार हैं तो C.M बनने के Chance बेशुमार हैं गर आप हैं स्कूल गए ता उम्र ईमानदारी से रहे घर में मिले हो सच्चाई की सीख न डाली हो भ्रष्टाचार को भीख बंदूक तो क्या चाकू से भी रहे हो दूर तो राजनीति में आप का कोई काम नहीं हुजूर एक प्रयोग अब भी हैं जारी खुद ही सोचिये किसकी हैं बारी गर भ्रष्टाचारी वैज्ञानिकों का Formula हो गया सफल जल्द P.M की कुर्सी पे आप देखेंगे बाहुब

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

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Photo Courtesy; Bhaskar तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैं जो आइने हमने बनाए हैं वो अलग बात कहे पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता हैं तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैं वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता हैं उसके तराजू में सब एकसा तुलता हैं भेद करे तो करे कैसे वो न तो उसको तन दीखता हैं न धन दीखता हैं उसके दर्पण में बस मन दीखता हैं तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता हैं :शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

छोड़ दे हाथ

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छोड़ दे हाथ की बरसात का मुझे इंतज़ार नहीं हैं छोड़ दे साथ की बरसात का मुझे इंतज़ार नहीं हैं होगी प्यार की बरसात मुझे ऐतबार नहीं हैं तुझे देख कर उभरे ज़ज्बात अब तुम में वो बात नहीं हैं छोड़ दे हाथ की बरसात का मुझे इंतज़ार नहीं हैं मांगने से मिल जाए ये खैरात नहीं हैं ये मेरी बरसात हैं किसे और की बरसात नहीं हैं जिंदगी गुनाह हैं तो हम गुनाहगार सही हैं छोड़ दे साथ की बरसात का मुझे इंतज़ार नहीं हैं जो दिया मेरा घर ही जला दे उससे अच्छा तो अंधकार सही हैं छोड़ दे हाथ की बरसात का मुझे इंतज़ार नहीं हैं जब तू ही तू रही मै रहा नहीं कही इससे अच्छा जिंदगी बिना प्यार सही हैं छोड़ दे हाथ की बरसात का मुझे इंतज़ार नहीं हैं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

सामर्थ्य EDITED

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मेरी हद क्या हैं मेरी उड़ान क्या जब उड़ना चाहू सरहद है क्या पंखो के हद में हैं पूरा आसमान पानी तक पे भी छोड देता हूँ निशान रीड मेरी सीधी हैं झुकना नहीं आता हर दर पे मै सर नहीं झुकाता अपनी हैं सरते मेरे अपने उसूल सामर्थ्य मेरी ताकत हैं और मुझे जीना कुबूल इबादत से मोहब्बत मोहब्बत है इबादत रिश्ते निभाता हूँ साफगोई से ये मेरी आदत गिर के उठने की हैं लत ये मेरा सामर्थ्य : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

सामर्थ्य REVISITED

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मेरी हद क्या हैं मेरी उड़ान क्या जब उड़ना चाहूँ सरहद हैं क्या गीर गीर के उठता रहा हू मै अब डरता नहीं हूँ गिरने से रास्ते में तुफा (तुफान) आए तो आए घबराता नहीं हू मिलने से मेरी हद क्या हैं मेरी उड़ान क्या हर चोट सिने पे ली हैं पीठ पे नहीं मिलेंगे निशा (निशान) मुसीबतों से भागू ऐसा नहीं मै इंसा (इंसान) मेरी हद क्या हैं मेरी उड़ान क्या मेरी अपनी हैं सरते मेरे अपने उसूल एक उसके दर के अलावा नहीं कही झुकना कुबूल मेरी हद क्या हैं मेरी उड़ान क्या जब उड़ना चाहू सरहद है क्या : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved