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Showing posts from 2010

अजनबी

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बहती हैं वो छुते हुए रहती हैं अगोश में और कहती के मै अजनबी किनारा हूँ  रोज रोज वो क्यों आस्मा देखे खोज में मेरी सारा जहा देखे फिर भी कहती की मै अजनबी सितारा हूँ  बरसती हैं जो पानी बनकर इतराती हैं जवानी बनकर आज भी कहती मै अजनबी धरा हूँ  मधहोश हैं मेरे नशे में बेहोस हैं प्यालो में तब भी कहती मै अजनबी मदिरा हूँ  अब उन्हें गवारा नहीं दिल में अरमा होना नहीं पसंद उन्हें हमारा इन्तहा होना फिर भी कहती की मै आज भी अजनबी हूँ  : शाशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved  

गर्व से कहो हम भारतीय है

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गर्व से कहो हम भारतीय हैं  चाहे हो गंगा की माटी से या अरावली की घाटी से या उपजा हो किसी भी उपवन से जा के पूछो किसी भी दर्पण से सचिन का हो खेल या अमर्त्य सेन का नोबेल चाहे बिंद्रा का हो स्वर्ण या कोई भी हो वर्ण चाहे किसी भी दिशा से आते हमे गर्व है की भारतीय कह लाते : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved  

न मंदिर का न मस्जिद का

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न मंदिर का न मस्जिद का ये झगडा हैं सिर्फ जीद का मेरा इश्वर हैं वो तो किसी का अल्लाह भी हैं  तो कही ईशा भी हैं  जब अपनों के बने दुश्मन अपने तो कैसे सजाए खुशहाली के सपने जब बहाता हैं खून भाई भाई का तब बच्चो की तरह रोता हैं  मेरा इश्वर तो उसका अल्लाह हैं  वो न खून की गंगा  न नफ़रत का मदीना अगर यही हैं जीना तो नहीं हैं जीना अपनी औलाद आपस में लड़ मरे किस बाप को ये अच्छा लगे न मंदिर का न मस्जिद का बस प्यार का भूखा हैं वो : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

काश हम भी किसीके वलेंटाइन होते

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रात हम भी किसीके सपनो में सोते किसीकी बाहों में हम भी खोते किसीके इश्क के समंदर में हम भी लागाते गोते काश हम भी किसीके  वलेंटाइन  होते तेरी आँखों में अपने निशा भर देते तेरे लबों को अपना कर देते तू हँसती तो हम भी हँसते तू रोती तो हम भी रो देते काश हम ही तेरे वलेंटाइन होते वो हम में बसते हम उनकी सांसो में वो धड़कते हमारे दिल में हम उनकी आँखों में हम उनकी जिंदगी होते वो हमारी बंदगी होती काश हम भी किसीके  वलेंटाइन  होते उनके ख्वाबा हमारे और उनके अरमान हम होते हम उनकी आरजू होते वो हमारी आबरू होती वो लैला हम भी मजनू होते काश हम भी किसीके वलेंटाइन   होते :शशिप्रकाश सैनी

DO ASHIRWAAD VIJAYIBHAVAH

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Rannbheri  hai  gunja rahi Raktha ranjiit khade himgerivar Milnothasuk sathru hai yahi Kalkuuta bahata ragoo me Hey maa vibransha hone do Vari gidgidaye hamare pago me Krutanta ka kahar tuthe Nirdosh ko na rone do Hey maatru bhumi Do ashirwaad vijayibhavah Kulish kaal bane kuul na rahe sesh Kool na ho coore na koi Kaptiyo ka kaaur hone do Hey maatru bhumi Do ashirwaad vijayibhavah Vah pramad me khoya hai Ke mahavir abhi bhi soya hai Svapna hai ke yachak bane hum Jidhar dekhe udhar ho tam Hey maa hume bhi trinetra hone do Kesari ko na sone do Hey maa vibransha hone do Funi ab fun khade Vishdhar  vish se mare Isa bujung ko kuchane do Hey maatru bhumi Do ashirwaad vijayibhavah  Har goli angar bane Asuro ka hum kaal bane Dhara ya sameer ho Faila daityo ka rudhir ho Durmathe ke durgathe ho Yam hum ho Hey maa phir lanka dahan hone do Vidhavansh hone do Hey maatru bhumi Do ashirwaad vijayibhavah : shashiprakash saini © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

ये कोई प्रेम गीत नहीं

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ये कोई प्रेम गीत नहीं हर मीत मनमीत नहीं न कोई हीर न कोई राँझा किसी के दिल में बची प्रीत नहीं दिल के बदले मिले दिल अब ये दुनिया के रीत नहीं ये कोई प्रेम गीत नहीं हर स्वर जो फूटे उन लबो से वो संगीत नहीं जब रातो में गिनीजाये मोहबत ये इश्क हार हैं  इसमें बची कोई जीत नहीं ये कोई प्रेम गीत नहीं : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

SHER O SHAYARI

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Bahot bhage hai mai se Ab pene ko maikhana chatha hu Har kadam rakha sambla ke   Kuch kadam ladkhadana chatha hu Dil ko rakha qaid me   Ab ishq ke bazaar me khud ko azmana chatha hu Dard ehasaas wafa kya hai jab wafa na malum toh bewafa kya hai Har ehasaas ke kushbo saaso me samana chatha hu Mai kuch kadam ladkhadana chatha hu © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

नज़रो से गिर गए

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उसकी चाहतो पे ऐसे झुके थे हम मालूम न पड़ा कब अपनी नज़रो से गिर गए तेरी बज़्म में दुनिया से दगा की तेरी ख़ुशी को अपना समझा गम को तेरे दिल में जगह दी पर्दा था तेरे प्यार का जब गिरा वो हम नज़रो से गिर गए न बची दोस्ती न दुश्मनी रही दोस्तों से दगा की और दुश्मनी निभाई न गयी मालूम ये पड़ा इश्क उसका बदगुमान था चलते हम अब नकाब में कही रास्ते में कोई आइना न मिले सूरत से अपनी शर्मिंदगी न हो : शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

जिंदगी समझो

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तेरा हुस्न हैं खुदाई जैसा तो हुमको बंदगी समझो तेरी मुस्कान जो दिखे बस उसी को जिंदगी समझो जब भूल जाए हालत तुम्हे देख कर उसी को बेखुदी समझो कब जुडेगा मेरा नाम तेरे नाम के साथ बस उसी को आरजू समझो जब नहीं दिखती तेरी सूरत उसी को जुस्तजू समझो : शशिप्रकाश सैनी

अभी नहीं मरना है

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शर्म से गिरे मस्तक को गर्व से तनना हैं  मुझे अपना नाम अमर करना हैं  अभी नहीं मरना हैं  चुभते कंकडो को मख्मल में बदलना हैं  टिमटिमाती लौ को शोला सा जलना हैं  अभी नहीं मरना हैं  जब हार मानी ही नहीं तो अंतिम कोई हार नहीं मुझे जीत में उभरना हैं  अभी नहीं मरना हैं  रेंग कर या दौड कर अभी आगे बढ़ना हैं  अभी बहोत चलना हैं  अभी नहीं मरना हैं  :शशिप्रकाश सैनी

खुद से कितना दूर हुआ

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रक्त प्रवाह हो रहा अवरुद्ध षड़यंत्र रचता खुद के विरुद्ध घात लगा के बैठा आत्मा पे कब आघात करू आदर्शो पर अपने ही कब वज्रपथ करू दर्द मेरे हृदय ने जाने कब तक सहा मै खुद पे कितना क्रूर रहा खुद से कितना दूर रहा आवाज नहीं पहुची साजिश थी सोची समझी कर्म पे पहरे लगा अधर्म नशों में बहाने लगा दिल से दिमाग का संपर्क टुटा जाल बुने मन ने झूठे से झूठा. अर्थ के आभाव में सामर्थ्य छूटा जाने कब तक मेरी आत्मा का लहू बहा मै खुद से कितना निष्ठुर रहा खुद से कितना दूर रहा धर्म हो गया खोखला मै अंतर्मन से कितना खेला मै क्यों फैला रहा अद्रशो में हल-चल क्यों मै पथभ्रष्ट हुआ क्यों मै समूल नष्ट हुआ सब जान मन रहा अनजान क्यों आत्मा ने नहीं खोजा समाधान क्यों हर पल कितनी मौत मारा मै खुद से कितना चुराए हुआ खुद से कितना दूर हुआ -शशिप्रकाश सैनी © 2011 shashiprakash saini,. all rights reserved

अधर्म की होती है हार

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आज रावण के साथ अपने पाप भी जला दो पोटली में दबे छुपे अभिशाप भी जला दो मात पिता के लिए अगर सब सुख त्यागने का बल हो  तभी तुम सबल हो नहीं तो निर्बल हो  जब राम की भाति बनो  तो भरत लक्ष्मण सा भ्राता मिले  सब कर्मो का हिसाब ये वसुधरा देती हैं  स्वर्ग कही होगा पर नर्क यही दिखा देती हैं  सीखो कुछ उस रावण की राख से  या उसको जलाने वाली आग से  की अधर्म की होती हैं हार  और धर्म ही करता हैं पार  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here//

पिछवाड़े की कटीली तार

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Photo Courtesy: Arun Kandpal न तो मै तलवार हूँ  न नहीं मै कोई दूसरा हथियार हूँ मै वहीं पिछवाड़े की सडी गली जंग लगी बाड़ हूँ  मै किसको बांधती नहीं नहीं ही छिनती हूँ किसकी आज़ादी मै रखती हूँ इस पार आबादी की उस पार छुपी हो सकती हैं बर्बादी कई तुफानो में मै खड़ा रहा जीद से ही सही पर वहीं अड़ा रहा कभी थी धारदार अब धार हुई बेकार मै वही पिछवाड़े की कटीली तार मै सिर्फ रोकती नहीं सिर्फ टोकती नहीं  आँगन खुशियों से रहे गुलज़ार इसलिए हूँ मै पहरेदार मै वैसे ही हूँ जैसे घर में संस्कार पुरानी हूँ कठोर हूँ  पर नहीं हूँ  मै बेकार मै वहीं पिछवाड़े की जंग वाली तार : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //